
“कर्पूरी के अति पिछड़ों के साथ अन्याय क्यों?”
अरवल जिला ब्यूरो बिरेंद्र चंद्रवंशी की रिपोर्ट
बिहार की राजनीति में सामाजिक न्याय के नाम पर लंबे समय से जातिगत गणनाएं और समीकरणों का खेल चलता रहा है।
परंतु यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन वर्गों के अधिकारों के लिए कर्पूरी ठाकुर जैसे नेताओं ने संघर्ष किया था, उन्हीं वर्गों के साथ आज छल किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा अति पिछड़ा वर्ग (EBC) की मूल भावना को कमजोर करना एक गंभीर चिंता का विषय है।
तेली, तमोली, दांगी जैसी जातियों को अति पिछड़े वर्ग में शामिल कर देना, जब वे सामाजिक और आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत संपन्न मानी जाती हैं।
उन वास्तविक वंचित जातियों के हक को छीनने जैसा है, जिन्हें कर्पूरी जी ने चिन्हित कर आरक्षण की सुरक्षा दी थी।
यह भी कड़वा सच है कि 1978 से 1990 तक जब बिहार में फॉरवर्ड जातियों के मुख्यमंत्री थे, तब भी कर्पूरी ठाकुर द्वारा निर्धारित अति पिछड़ा आरक्षण व्यवस्था को नहीं छेड़ा गया।
लेकिन 1990 के बाद की राजनीति में, विशेषकर लालू प्रसाद यादव, सुशील कुमार मोदी और नीतीश कुमार की त्रयी ने अपने-अपने जातीय हितों के लिए अति पिछड़ा वर्ग की रचना में अनुचित फेरबदल किए।
आज अगर कोई कहे कि नीतीश कुमार जातिवादी नहीं हैं, तो वह सच्चाई से मुंह मोड़ रहा है। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने अपने समुदाय (कुर्मी) के राजनीतिक, शैक्षणिक, आर्थिक और सरकारी अवसरों को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वहीं, कर्पूरी ठाकुर के वास्तविक अति पिछड़ों को धीरे-धीरे हाशिए पर धकेल दिया गया।
यह वक्त है कि अति पिछड़ा समाज जागे, सवाल करे और इस तथाकथित सामाजिक न्याय की परतों को उघाड़ कर देखे कि इसके नीचे किसका हित साधा गया है और किसका गला घोंटा गया है।




















