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शिक्षा ही मानवीय जीवन का सबसे बड़ा स्तंभ: श्री जीयर स्वामी जी महाराज

शिक्षा ही मानवीय जीवन का सबसे बड़ा स्तंभ: श्री जीयर स्वामी जी महाराज

रोहतास दावथ संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट 

 दावथ (रोहतास): परमानपुर चातुर्मास्‍य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने मंगलवार को प्रवचन करते हुए शिक्षा पर विशेष प्रकाश डाला।

शिक्षा एक ऐसा अमृत तत्व है, जिसका पान करने से संपूर्ण जीवन अमृतमय हो जाता है। इसीलिए बच्चे और बच्चियों को बचपन से ही शिक्षा रूपी अमृत का पान कराना चाहिए।

शिक्षा से जीवन में उन सभी चीजों को प्राप्त किया जा सकता है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। शिक्षा संस्कार की जननी है। शिक्षा मानवीय जीवन जीने की पद्धती है। शिक्षा समाज में बेहतर सामंजस्य स्थापित करने का एक सबसे बड़ा माध्यम है।

शिक्षा मानवीय जीवन को बेहतर तरीके से संचालित करने के लिए भी बहुत जरूरी है। जिसकी सहायता से व्यक्ति अपने जीवन में नौकरी, व्यापार, रोजगार की व्यवस्था को भी सुनिश्चित कर पाता है।

शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिससे केवल व्यक्ति का ही व्यक्तित्व नहीं बदलता है, बल्कि एक शिक्षित व्यक्ति के माध्यम से उसके साथ रहने वाले पुत्र, पुत्री, भाई, बहन और समाज को भी बेहतर ज्ञान की प्राप्ति होती है।

जिसके माध्यम से एक व्यक्ति हजारों हजार की संख्या में लोगों को शिक्षित करता है। इसीलिए जब एक बच्चा या बच्ची को हम शिक्षित करते हैं, तो उससे हमारा पूरा समाज शिक्षित होता है। इसीलिए हम सभी की यह जिम्मेदारी है कि हम अपने बच्चे और बच्चियों को शिक्षित बनाने के लिए निरंतर प्रेरित करें।

शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिससे हम भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में भी जानकारी प्राप्त करते हैं। जिससे हमें यह ज्ञान प्राप्त होता है कि इतिहास कैसा था, आज वर्तमान कैसा है और भविष्य कैसा होना चाहिए।

इस तीनों काल को जब हम शिक्षित होकर के समझते हैं, तब हमें अपने भविष्य को अपनी आने वाली पीढ़ी को और भी ज्यादा ताकतवर, बेहतर, ज्ञानवर्धक, ज्ञान को बेहतर मार्गदर्शन देने के लिए भी हम काम करते हैं।

इसीलिए शिक्षा केवल एक काल को ही बेहतर नहीं करता है, बल्कि वर्तमान के साथ भविष्य को भी उज्जवल करता है।

एक शिक्षित व्यक्ति छोटे से छोटे पद से लेकर के बड़े से बड़े पद को भी प्राप्त करता है। शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा चतुर्थ वर्ग की कर्मचारी से लेकर के प्रथम वर्ग के आधिकारी तक का पद प्राप्त कर सकते हैं।

न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, पत्रकारिता के क्षेत्र में भी बड़े पद को प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिससे देश का नेतृत्व करने का भी अवसर प्राप्‍त हो सकता है।

इसलिए आज समाज में हर माता-पिता की एक बड़ी जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों को गाय रूपी दूध का भी सेवन कराए जिससे स्वास्थ्य मजबूत होगा तथा शिक्षा रूपी दूध का भी पान कराए जिससे ज्ञान रूपी ताकत प्राप्त होगा।

जो एक ऐसा ताकत है, जिसको कोई छीन नहीं सकता है। जिसमें कोई हिस्सा नहीं ले सकता है। जिसको कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता है। वैसे शिक्षा रूपी ताकत को अपने बच्चों को पान अवश्य कराएं।

पढ़ाई के समय पर आज बच्चे और बच्चियां टेक्नोलॉजी के कारण भटक जा रहे हैं। आज टेक्नोलॉजी जितना ज्यादा कारगर है, उतना ही बच्चे और बच्चियों को शिक्षा से भटकाने का एक बड़ा माध्यम बन गया है।

इसीलिए हम सभी बच्चे और उनके माता-पिता को विशेष रूप से कहना चाहते हैं कि आप आज का जो वर्तमान समय है, उसका उपयोग आप शिक्षा में लगाए।

क्योंकि आज का जो समय बीत जाएगा दुबारा आपके जीवन में कभी नहीं आएगा। आप आगे चलकर भी टेक्नोलॉजी और मोबाइल के मनोरंजन का जो आज सहारा ले रहे हैं, उसको प्राप्त कर सकते हैं।

लेकिन शिक्षा प्राप्त करने का समय दोबारा आपको नहीं मिलेगा। क्योंकि शास्त्रों में भी कहा गया है कि बचपन में जो बच्चे और बच्चियों के पास समझने की सीखने की जो क्षमता होती है, वह आगे चलकर कम हो जाती हैं। शिक्षा प्राप्त करने का समय लगभग बचपन से 25 वर्षों तक बताया गया है।

इस समय का आप सही उपयोग करते हैं तो आपका जीवन बन जाता है। लेकिन समय को आप व्यर्थ बर्बाद कर देते हैं, तो पूरा जीवन परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसीलिए बचपन और शिक्षा के समय को पढ़ाई के ही कार्यों में लगाएं।

श्रीमद् भागवत कथा प्रसंग अंतर्गत स्वामी जी ने भगवान श्री कृष्ण का यानी चंद्र वंश का वंश परंपरा के बारे में बताए।

भगवान श्रीमन नारायण के नाभि से कमल, कमल से ब्रह्मा जी, ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि ऋषि, मरीचि ऋषि के पुत्र कश्यप ऋषि, कश्यप ऋषि के पुत्र सूर्य देव हुए। सूर्य देव के पुत्र वैवस्तव मनु के पुत्र राजकुमार सुदुम्‍य थे।

जिन्हें एक श्राप के वजह से एक महीना लड़का और एक महीना लड़की होना पड़ा था। जब लड़की के स्वरूप में थे तो चंद्रमा के पुत्र बुद्ध से उनका विवाह हुआ। जिससे उनके एक पुत्र पूरुरवा नाम के हुए।

भगवान श्रीमन नारायण के नाभि से कमल कमल से ब्रह्मा जी, ब्रह्म जी के पुत्र अत्रि ऋषि हुए, अत्रि ऋषि के पुत्र चंद्रमा और चंद्रमा के पुत्र बुद्ध हुए। बुद्ध का विवाह सूर्य के पुत्र वैवस्‍तव मनु के पुत्र सुदुम्‍य जो कि एक महीना लड़की और लड़का रहते थे लड़की थे तब उनका बुद्ध से विवाह हुआ।

चंद्रमा के पुत्र बुद्ध से विवाह हुआ, जिससे राजकुमार पूरुरवा हुए। जिनसे आगे चंद्रवंश चला। पूरुरवा के वंश में बहुत आगे चलकर नहुष नाम के राजा हुए।

नहुष के पुत्र ययाति हुए। ययाति और उनकी पत्नी देवयानी से राजा यदु हुए। उनके वंश में आगे चलकर एक देवहिड़ नाम के राजा हुए। देवहिड़ राजा की दो पत्नियां थी।

एक पत्नी से सूर्यसेन नाम के पुत्र हुए। दूसरी पत्नी से अजन्य प्रजन्य पुत्र हुए। सूर्यसेन से वासुदेव जी हुए और अजन्य प्रजनन से नंद बाबा हुए। वासुदेव जी की एक पत्नी देवकी से कृष्ण जी हुए और दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम जी हुए।

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