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अतिपिछड़ा आरक्षण का कीमत कर्पूरी ठाकुर जी का मुख्यमंत्री के कुर्सी का बलिदान

अरवल जिला ब्यूरो बिरेंद्र चंद्रवंशी की रिपोर्ट 

आपातकाल के बाद जय प्रकाश नारायण के पहल पर लोकदल, सयुक्त सोसलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जनसंघ, संघठन कांग्रेस के मिलन से जनता पार्टी का गठन होता हैं।

केंद्र में मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री एवं बिहार में जननायक कर्पूरी ठाकुर 24 जून 1978 को मुख्य्मंत्री बनते हैं।

मुख्यमंत्री बनते ही कर्पूरी ठाकुर ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए बिहार में मुंगेरी लाल के अनुसंसा को लागू करते हुए बिहार में पिछड़ा एवम अतिपिछड़ा को आरक्षण लागू करते है। यही से अतिपिछड़ा वर्ग को संविधानिक दर्जा प्राप्त होता हैं।

पूरे बिहार दो भागो में बट जाते है एक तरफ पिछड़ा,अतिपिछड़ा एवम दुसरे तरह स्वर्ण समाज। शहर से लेकर ग्रामीण स्तर पर तनाव उत्पन्न हो जाता है।

इस आरक्षण का विरोध में जनता दल के स्वर्ण नेता एवं जनसंघ (वर्तमान भाजपा)से आए हुए विधायक गण रहते हैं। कर्पूरी ठाकुर इनके विरोध को नजरंदाज कर आरक्षण पर कायम रहते हैं।

तब स्वर्ण विधायक एवं जनसंघ पृष्ठ भूमि वाले विधायक ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर इनके विरोध में वोटिंग करते है। कर्पूरी बाबू की सरकार 30 मतो से अविश्वास प्रस्ताव में गिर जाता है।

तब स्वर्ण विधायक एवं जनसंघ विधायक ने जनता पार्टी में जगजीवन राम को नेता मानने वाले दलित विधायको के सहयोग से बिहार में एक कठपुतली मुख्यमंत्री श्री रामसुंदर राम को बनाते हैं। जो नाम के दलित मुख्यमंत्री पर इनका सारा रिमोट स्वर्ण विधायक के पास होता हैं।

स्वर्ण विधायक, जनसंघ पृष्ठ भूमि वाले विधायक एवं रामसुंदर दास आरक्षण को पंगु बनाना चाहते थे पर पिछड़ी जाति के विधायक एवं कर्पूरी ठाकुर के कारण यह आरक्षण लागू रहता हैं।

आज जो आरक्षण पिछड़ी एवं अतिपिछड़ी जाति को मिल रहा है वह कर्पूरी ठाकुर जी के मुख्यमंत्री के कुर्सी के बलिदान के कारण मिला हैं।
इसे आरक्षण को बचाना होगा।
कौशल कुमार
पैक्स अध्यक्ष

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