
रोहतास दावथ संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट
काराकाट/ दावथ (रोहतास)। काराकाट प्रखंड के ग्राम बाद में आयोजित 25 कुंडीय श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के प्रथम दिन सोमवार को प्रवचन के दौरान लक्ष्मी प्रसन्ना श्री जी स्वामी जी महाराज ने मानव जीवन और कथा का संबंध विषय पर चर्चा किया।
इसके अंतर्गत अपने निवेदन में उन्होंने कहा कि किसी विषय के गुण और महत्व को जाने बगैर उसके प्रति आस्था जागृत नहीं हो सकती। इसलिए सबसे पहले कथा को भली भांति समझने की आवश्यकता है ।
शरीर संस्कृत आत्म प्रकृति संसार एवं जगत जगदीश के स्वरूप का बौद्ध जिस माध्यम से होता है उसे कथा कहते हैं। श्रीमद् भागवत पुराण 18 पुराणों में श्रेष्ठ बताते हुए स्वामी जी ने कहा कि समस्त मूल तंत्रो को इसमें समाहित किया गया है।
6000 वर्ष पूर्व महर्षि वेदव्यास ने पहली बार वेद की रचना की जो मानव जाति के लिए अति महत्वपूर्ण है। इसके पूर्व यह पद्धति श्रुति रूप में विकसित थे।
भ्रांतियां को दूर करने के उद्देश्य से उन्होंने कहा कि जिसका अस्तित्व होता है उसी की खोज की जाती है। नास्तिक विचार इससे मिथ्या समझते हैं और नियंता को नहीं मानते। सनातनी ग्रंथों के बाद अन्य सभी पंथ ग्रंथों की रचना की गई है।
मनुष्य के जीवन को सरल एवं सुगम बनाने के लिए वेदव्यास जी ने वेद एवं उपनिषदों की रचना किया। श्रीमद् भागवत महापुराण में 100000 श्लोक को रखा गया जिन्हें चार वर्गों में वर्गीकृत कर चार वेद निर्धारित किए गए।
शास्त्र, संस्कृति एवं संत को मानव का लोचन बताया और उसी संबंध का बोध होता है। उंगली मार डाकू का उदाहरण देते हुए उन्होंने इन प्रसंगों को रखा।