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पूरे दुनिया के ईश्वर एक हैं : श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज

पूरे दुनिया के ईश्वर एक हैं : श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज

रोहतास दावथ संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट 

दावथ( रोहतास): परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा आप चाहे जिसको भी मानते हो, आराधना करते हों, पूजा करते हों, उसको आप ईश्वर के रूप में ही मानते हैं। ईश्वर एक ही है और वह ईश्वर ही इस पूरे जगत के पति है।

ब्राह्मण को अपमानित कर आज सभी लोग ब्राह्मण बनना चाहते हैं :-स्‍वामी जी ने बताया कि आज समाज में एक परंपरा चल रही है। कोई भी कभी भी ब्राह्मण के लिए अपमानित शब्द का उपयोग कर रहा है। आखिर लोगों को बताना चाहिए कि आप ब्राह्मण ही क्यों बनना चाहते हैं। आज हर कोई चाहता है कि हम ब्राह्मणों के जैसा पूजा पाठ इत्यादि कराएं। आज लोग ब्राह्मण के स्वरूप को अपना रहे हैं।

चाहे वह किसी भी जाति धर्म से हो, हर धर्म में तो पूजा पाठ करने के लिए एक ब्राह्मण के समान पंडित का स्वरूप बनाया जा रहा है। फिर एक सवाल उत्पन्न होता है कि आखिर ब्राह्मणों को अपमानित करके आप ब्राह्मण के जैसा स्वरूप आखिर क्यों बनाना चाहते हैं।

इसका मतलब है कि ब्राह्मण को आप अच्छे मानते हैं। ब्राह्मण के व्यवहार, आचरण, गुण को आप मानते हैं। लेकिन स्वीकार नहीं करना चाहते हैं।वैदिक धर्म शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण को देवता बताया गया है। जिस प्रकार से सूर्य, अग्नि, चंद्रमा, इंद्र इत्यादि देवता हैं।

उसी प्रकार से ब्राह्मण को भी देवता से संबोधित किया गया है। यदि आप धार्मिक ग्रंथो को पढ़ेंगे तो आपको ब्राह्मण यानी ब्रह्म की सत्ता को जो समझाने वाला है। जो भगवान की शरणागति को प्राप्त कराने का सबसे बड़ा माध्यम है।

जो वेद के मंत्रों को उच्चारण करके समाज संस्कृति के हित में कार्य करते है वही ब्राह्मण है। ब्राह्मण समाज के लिए मार्गदर्शन का काम करते है,जिससे उन परम ब्रह्म तत्वों को समझा जा सके ।पूजा की अलग-अलग पद्धती है। लेकिन हर दर्शन में कोई न कोई एक पंडित जरूर है।

इस्‍लाम दर्शन, जैन दर्शन इत्‍यादि में उनके अपने अराध्‍य को समझाने वाले होते हैं। उनका भी काम तो उन ईश्वर को समझाना उन ईश्वर को प्राप्त करने की कला समझाना होता है। वह भी एक पंडित के रूप में ही होते हैं।

इसलिए चाहे कोई भी धर्म या दर्शन हो हर जगह पूजा पद्धति के लिए एक पंडित के जैसा काम करने वाला कोई न कोई व्यक्ति ब्राह्मणों के जैसा ही कार्य करता है। इसीलिए ब्राह्मण का विरोध करके भी आप ब्राह्मण के जैसा ही आचरण व्यवहार इत्यादि को अपनाते हैं।

समाज में हर व्यक्ति का सम्मान होना चाहिए। चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, वर्ण, व्यवस्था से आता हो। श्रीमद् भागवत महापुराण कथा प्रसंग अंतर्गत स्वामी जी ने कहा कि नैमिषारण्य के पावन क्षेत्र में सौनक ऋषि के द्वारा सूत जी से सवाल किया जा रहा था। सूत जी ब्राह्मण नहीं थे।

लेकिन सूत जी जो 88000 संत महात्माओं के बीच में व्यास गद्दी की शोभा बढ़ा रहे थे। वे न ब्राह्मण थे न क्षत्रिय थे न वैष्‍य न ही शुद्र थे। वह एक चंचल माता पिता के स्‍वभाव से जन्‍म लिए थे।

इसीलिए आप किसी भी जाति से आते हो चाहे आप ब्राह्मण ही हो, लेकिन आपका आचरण, व्यवहार, खान-पान, रहन सहन, उठन बैठन ब्राह्मण के जैसा नहीं है तो आप ब्राह्मण कहलाने के योग्य नहीं है। व्‍यक्ति से बड़ा व्‍यक्ति का व्‍यक्तित्‍व होता हैं।

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