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भगवान निराकार नहीं आकार वाले हैं: श्री जीयर स्वामी जी महाराज

भगवान निराकार नहीं आकार वाले हैं: श्री जीयर स्वामी जी महाराज

भगवान का 18वां अवतार हैं भगवान श्री राम

मर्यादा के अवतार है भगवान श्री राम

रोहतास दावथ संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट 

दावथ (रोहतास):

परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन करते हुए भगवान के आकार, गुण पर प्रकाश डाला। भगवान निराकार नहीं बल्कि आकार वाले हैं। कुछ लोग कहते हैं कि भगवान निराकार हैं। लेकिन बिना आकर के भगवान की लीला अवतार कैसे हो सकता है।

उदाहरण के लिए यदि कहा जाएगा कि किसी व्यक्ति का शादी होने वाला है। लेकिन वहां पर जिसका शादी होने वाला है वह व्यक्ति नहीं है, लेकिन शादी होगा। अब जब वहां पर व्यक्ति ही नहीं है। उसका आकार ही नहीं है तो शादी किसके साथ होगा।

इसीलिए जो भी लोग कहते हैं कि भगवान निराकार हैं उनका कोई आकार नहीं है। भगवान ने अलग-अलग अवतार में कई प्रकार की लीलाएं की हैं। जिनका आकार भी है, जिनका गुण भी है, जिनका मर्यादा भी है, जिनका मार्गदर्शन भी है, जिनका स्वरूप भी है, वही भगवान श्रीमन नारायण अलग-अलग युगों में अलग-अलग प्रकार से अवतार लेकर के जीवों का कल्याण किए है।

श्रीमद् भागवत कथा अंतर्गत भगवान के 24 अवतारों की कथा सुनाया जा रहा है। जिसमें भगवान श्री राम का 18वां अवतार है। भगवान श्रीमन नारायण से कमल, कमल से ब्रह्मा जी हुए, ब्रह्मा जी के पुत्र हुए जिनके वंश परंपरा में दशरथ जी हुए।

दशरथ जी के पुत्र श्री राम जी हुए। भगवान श्री राम का जन्म भी मर्यादा की स्थापना के लिए हुआ था। जब रावण युवावस्था में था उस समय लोगों को बहुत परेशान करता था। जितने भी ऋषि, महर्षि, तपस्वी थे उनसे टैक्स वसूल करता था।

रावण ने सभी ऋषियों से कह दिया था कि आप लोग अपने शरीर से कुछ खून निकाल कर के लगातार मेरे यहां पहुंचाते रहे। वही जितने भी ऋषि महर्षि थे सभी लोग अपने शरीर के कुछ खून रावण के घर पर भेजते थे।

रावण उसको एक जगह एकत्रित करके रखता था। रावण उन सभी ऋषि महर्षियों का खून पीकर के उनके शक्ति को प्राप्त करना चाहता था। वही एक तीन अपने घर में सारे ऋषियों का खून रखा था जो रावण की पत्नी मंदोदरी पान कर गई।

अब उन ऋषि महर्षिओं के खून को पीने के कारण मंदोदरी गर्भावस्था को प्राप्त कर गई। जब रावण को इस बात की जानकारी हुई तब रावण मंदोदरी को डांटने लगा। लेकिन अब उन ऋषि महर्षिओं के खून पीने के कारण मंदोदरी के घर में जो बच्चा पल रहा था वह एक बच्ची के रूप में थी।

वही बच्ची को रावण ले जाकर के जनकपुर में मिट्टी के नीचे रखवा दिया। एक बार सूर्य भगवान की पुत्री वेदवती तपस्या कर रही थी। वही रावण पहुंच गया। जाकर के कहने लगा कि हम तीनों लोकों के मालिक हैं हम ईश्वर हैं हमसे शादी करो। वही वेदवती के बालों को पकड़ लिया। इसके बाद वेदवती ने कहा कि तुमने मेरे तपस्या को भंग किया है। हम तो केवल अपना पति श्रीमन नारायण को ही मानते हैं। वहीं वेदवती ने अपनी तपस्या द्वारा बालों को काट दिया।

जिसके बाद रावण से वेदवती का शरीर अलग हो गया। वहीं वेदवती ने रावण को श्राप दिया कि हम तुम्हारे मृत्यु का कारण बनेंगे। वहीं अगले जन्म में वेदवती ही सीता के रूप में जन्म ली। वही भगवान श्रीमन नारायण वेदवती के वचनों को पूरा करने के लिए श्री राम के रूप में अवतरित हुए।

आगे चलकर जनकपुर में जो मंदोदरी के द्वारा गर्भ में पल रही बच्ची को मिट्टी के नीचे जो एक मटका में डाल करके रखा गया था वही जब जनक जी अपने खेत को खुदवा रहे थे तो वहीं मिट्टी के नीचे रखी गई जो बच्ची थी। वहीं बच्ची जनक जी अपने घर पर ले आए। जो आगे चलकर सीता के रूप में हुई जिनका शादी भगवान श्री रामचंद्र से हुआ।

एक बार रावण ब्रह्मा जी के पास पहुंचा। जहां पहुंचकर रावण ने ब्रह्मा जी से कहा कि बाबा कुंडली देखकर के बताइए कि मेरे कुंडली में क्या है। वहीं ब्रह्मा जी ने कहा कि रावण तुम्हारे कुंडली में योग अच्छा नहीं है। सूर्यवंश में एक राम होंगे जिनके द्वारा तुम्हें मृत्यु को प्राप्त कराया जाएगा। वहीं रावण अनेक प्रकार से सूर्यवंश परंपरा में दशरथ जी के विवाहों को बार-बार रोकने का प्रयास किया।

कई प्रकार से दशरथ जी के विवाह इत्यादि में बाधा पहुंचाया। दशरथ जी के विवाह के बाद भी उनको पुत्र नहीं हो रहा था। आगे चलकर एक ऋषि के द्वारा यज्ञ करवाया गया। उस यज्ञ से निकले खिर के माध्यम से कौशल्या जी, कैकई और सुमित्रा को पुत्र की प्राप्ति हुई। जिसके फलस्वरुप कौशल्या जी से भगवान श्री राम कैकई से भरत जी और सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्‍न हुए। इस प्रकार से भगवान श्री राम का जन्म हुआ।

भगवान श्री राम की वंश परंपरा

भगवान श्रीमन नारायण के नाभि से कमल, कमल से ब्रह्मा जी हुए। ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि ऋषि, मरीचि ऋषि के पुत्र कश्यप ऋषि हुए, कश्यप ऋषि के पुत्र सूर्य हुए, सूर्य भगवान के पुत्र सत्यव्रत श्राद्ध देव मनु जी हुए, मनु जी के पुत्र इच्छवाकू हुए, इच्छावाकू के पुत्र रघु हुए, आगे रघु के पुत्र दशरथ जी हुए और दशरथ जी के पुत्र श्री राम हुए। इस प्रकार से भगवान श्रीमन नारायण से भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या के राजा दशरथ जी के पुत्र के रूप में हुआ।

आगे चलकर विश्वामित्र मुनि के द्वारा भगवान श्री राम को लेकर आया गया। जहां अहिल्या जी का भी उद्धार भगवान श्री राम ने किए था। वहीं जनकपुर में जनक जी के द्वारा अपनी पुत्री सीता के लिए स्वयंवर रचाया गया था। जहां पर विश्वामित्र जी श्री राम और लक्ष्मण को लेकर के गए। जहां पर भगवान श्री राम के द्वारा धनुष को तोड़ा गया।

जिसके बाद परशुराम जी वहां पर आकर के क्रोधित हुए। आगे परशुराम जी भगवान श्री राम के अवतार को पहचान गए। जिसके बाद भगवान श्री राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न सहित चारों भाइयों का विवाह जनक जी के चारों पुत्री से हुआ।

आगे चलकर अयोध्या में भगवान श्री राम को राजा बनाने के लिए दशरथ जी तैयारी कर रहे थे। तब तक कैकई के द्वारा अपने दो वचनों के कारण भगवान श्री राम के लिए 14 वर्ष का वनवास और भरत जी के लिए राज पाठ की मांग की गई। इस बात की जानकारी जब भगवान श्री राम को हुआ तब वह 14 वर्षों के वनवास के लिए निकल गए। आगे भरत जी को इस बात की जानकारी हुई।

जिसके बाद अपनी माता कैकई को काफी डांट फटकार लगाए। भगवान श्री राम के वन जाने के कारण उनके पिता दशरथ जी को भी मृत्यु को प्राप्त करना पड़ा। भगवान श्री राम के 14 वर्ष के वनवास में कई ऋषि महर्षि तपस्वियों का भी दर्शन हुआ। वहीं सूर्य की पुत्री के श्राप के कारण सीता के रूप में जन्म लेकर राम जी की पत्नि बनी।

वही आगे चलकर शुर्पणखा के कारण रावण के द्वारा सीता जी को हरण किया गया। जिसके बाद भगवान श्री राम और रावण के साथ युद्ध हुआ। जिसमें रावण को मृत्यु को प्राप्त करना पड़ा।

आगे चलकर श्रीलंका के राजा विभीषण जी बनाए गए। किष्किंधा के राजा सुग्रीव बने। 14 वर्ष के वनवास को पूरा करके भगवान अयोध्या लौट गए। जहां पर राजकाज की व्यवस्था को 11000 वर्षों तक भगवान श्री राम ने संभाला।

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