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जाति और जातीयता हर घर में है: श्री जीयर स्वामी जी महाराज

जाति और जातीयता हर घर में है: श्री जीयर स्वामी जी महाराज

रोहतास दावथ संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट 

दावथ (रोहतास): परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि दुनिया में जाति हर चीज में है। जाति और जातीयता से कोई अलग नहीं है। हर घर में भी जाति और जातीयता है। इसीलिए जो भी लोग जाति के आधार पर समाज में भेदभाव और बांटने का प्रयास करते हैं, वह सरासर गलत है। उन्हें जाति का मतलब समझने की जरूरत है।

हम आपको कई उदाहरण देकर के आज स्पष्ट तरीके से जाति का मतलब समझाते हैं। अमीर या गरीब कोई भी व्यक्ति जब आभूषण खरीदने के लिए जाता है। चाहे उसे एक ग्राम ही सोना खरीदना हो। वह कहता है कि सौ पर्सेंट ओरिजिनल वाला सोना चाहिए। जो शुद्ध सोना हो वहीं वह खरीदना चाहता है। यहां पर भी तो जाति है।

दुकान पर आप सोना शुद्ध खरीदना चाहते हैं, तो नकली और असली शुद्ध और मिलावटी यहां पर भी तो जाति हो गया। दूसरा आप अपने घर में दरवाजा, चौखट लगाने के लिए लकड़ी खरीदने जाते हैं। वहां जाते हैं, तो सखुआ, शीशम अच्छे से अच्छे लकड़ी खरीदने का प्रयास करते हैं, तो वहां भी आप लकड़ी की जो बेहतर क्वालिटी है, उसको खोजते हैं। लकड़ी में भी तो जाति हो गया।

वहां पर भी महुआ का लकड़ी, आम का लकड़ी, शीशम का लकड़ी, सखुआ का लकड़ी कई प्रकार की लकड़ी होता है। अब जिनको जाति से समस्या है, वह कभी लकड़ी खरीदने के लिए जाते हैं तो क्या दुकान पर कहते हैं कि कोई भी लकड़ी दे दीजिए। कोई व्यक्ति अपने घर में रेड़ का चौखट या दरवाजा लगाता है।

छोड़िए सामान की बात छोड़ते हैं। हम घर की ही बात करते हैं। घर में माता है, पिता है, पत्नी, बेटी, बहन, दादी, दादा होते हैं। अब इनको भी अलग-अलग नाम से परिभाषित करने की क्या आवश्यकता है। इनका भी एक जाति बना करके और एक ही नाम से सभी लोगों का संबोधन किया जाता।

इस प्रकार से आप स्वविवेक से समझ सकते हैं कि हर जीव, वस्तु, व्यवस्था के लिए मर्यादा सृष्टि को व्यवस्थित करने के लिए जरूरी है। क्योंकि घर में जिस प्रकार से माता के साथ अलग संबंध होता है। पत्नी के साथ अलग संबंध होता है। बहन, बेटी, बुआ के साथ अलग संबंध होता है।

उसी प्रकार से संसार में जितनी भी जाति है, वह भी समाज, संस्कृति, सभ्यता, मानवता को सही तरीके से व्यवस्थित करने के लिए होता है न कि समाज में भेदभाव, द्वेष, लड़ाई, झगड़ा, विवाद उत्पन्न करने के लिए है। लेकिन कुछ लोग अपने आप को जाति का रक्षक बता करके समाज में बांटने का काम करते है। उन्हें इन सभी बातों पर विचार करने की जरूरत है।

पानी का भी एक उदाहरण लिया जा सकता है। संसार में रहने वाले सभी लोग पानी पीते हैं। हम लोग देखते हैं कि जो पानी एक ही जगह पर रुक जाता है उसमें गंदगी भर जाता है।

उस पानी को लोग नहीं पीते हैं। हर व्यक्ति चाहता है कि शुद्ध, अच्छा, स्वच्छ जल ग्रहण करें तो जल में भी एक अच्छा जल और एक गंदा जल होता है। यहां भी तो अलग-अलग दो जातियां हो जाती है। इस प्रकार से चाहे कोई भी व्यवस्था हो, वस्तु हो, जीव हो, प्राणी हो उसमें जाति है।

उसको जाति से अलग नहीं किया जा सकता है। यदि आप जाति से मुक्त होने का प्रयास करेंगे तो आपका गुण, तत्व, व्यवस्था, वस्तु, स्थिति बिगड़ जाएगी। जिससे प्रकृति में अव्‍यवस्था का वातावरण बन जाएगा।

इस दुनिया को चलाने वाले ईश्वर हैं। ईश्वर के अधीन प्रकृति है। प्रकृति में भी जाति है। जिस प्रकृति के माध्यम से जीवन में हवा, जल, अग्नि, पृथ्वी, आकाश, तत्व का अनुभव होता है।

जिसके माध्यम से प्राणियों के जीवन का सांस संचालित होता है। वह प्रकृति भी जाति में बंटी हुई है। प्रकृति को व्यवस्थित रखने के लिए कई प्रकार के पौधारोपण किया जाता है। पेड़ और पौधा को सभी लोग मानते हैं।

अब इसी प्रकृति में, पेड़ों में भी कई प्रकार के पेड़ होते हैं। जिसका गुण, आचरण, शक्ति, सामर्थ्‍या, तेज अलग होता है। पीपल के पेड़ को मानव जीवन के लिए सर्वश्रेष्ठ पेड़ बताया गया है। जिसके माध्यम से 24 घंटे ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है।

पीपल एक ऐसा पेड़ है जो रात में भी ऑक्सीजन देता है। जबकि दुनिया में और जितने भी पेड़ है, वह रात में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। अब इनमें भी तो जातीयता है। अब कोई व्यक्ति कहे कि इसमें भी भेदभाव है। क्योंकि पीपल 24 घंटा निरंतर ऑक्सीजन देता है।

वहीं दूसरे पेड़ केवल 12 घंटा ही ऑक्सीजन देते हैं। अब इस धरती पर हम जीव या प्राणी इसको बदलना चाहे तो क्या इसको हम बदल सकते हैं यह संभव है। बिल्कुल इसको नहीं बदला जा सकता है।

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