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बच्चों के जन्म के बाद कुंडली जरूर बनवाना चाहिए: श्री जीयर स्वामी जी महाराज

बच्चों के जन्म के बाद कुंडली जरूर बनवाना चाहिए: श्री जीयर स्वामी जी महाराज

रोहतास दावथ संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट 

दावथ ( रोहतास) परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि बच्चे और बच्चियों का जन्म के बाद कुंडली जरूर बनवाना चाहिए। जीवन में कुंडली का विशेष महत्व है। 27 नक्षत्र एवं नौ ग्रह के अलावा एक दो और ग्रह जो कुंडली में होते हैं, उन्हीं के आधार पर व्यक्ति के जीवन में भविष्य का परिणाम पता चलता है।

समय से पहले यदि जीवन में घटने वाली जो दुखद घटनाएं होगी, उस घटनाओं को सूक्ष्म रूप में परिवर्तित करने के लिए कुंडली एक बहुत ही विशेष साधन है। जिसकी सहायता से जीवन में कब कौन सी घटनाएं होने वाली है, उसकी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

कुंडली में जो भी फल लिखा जाता है, उसमें नक्षत्र, ग्रह एवं दिन का विशेष महत्व है। सभी व्यक्ति का जन्म रविवार से लेकर के शनिवार के बीच में ही होता है, तो जन्म के दिन, समय और जगह के आधार पर ही कुंडली बनता है। इसलिए जब भी कोई बच्चा या बच्ची जन्म लेते है, तो उस समय को सही तरीके से लिख लेना चाहिए।

कितना बजे, कितना मिनट, कितना सेकंड पर जन्म हुआ है, इसका बहुत ज्यादा विशेष महत्व है। पहले के जमाने में तो माताएं सूर्य और चंद्रमा की रोशनी के आधार पर समय का आकलन करती थी। लेकिन आकलन के आधार पर जो कुंडली बनता है, उसका फल सही नहीं होता है।

लेकिन जब जन्म का सही समय, दिन, तिथि, जगह को आप सही तरीके से लिख कर रखेंगे, उसके बाद किसी अच्छे विद्वान, जानकार ज्योतिषी से कुंडली बनवाएंगे तो आपका कुंडली विशेष लाभकारी होगा। कुंडली किसी जानकार विद्वान से ही बनवाना चाहिए।

किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं बनवाना चाहिए, जिनको कुंडली का विशेष ज्ञान नहीं हैं। क्योंकि कुंडली में जो भी फल और घटनाएं निश्चित किया जाता है, वह घटनाएं और फल ग्रह, नक्षत्र के आधार पर तय होता है। उसमें थोड़ा भी गलती होने पर उसका फल बदल जाता है। इसीलिए अच्छे ज्योतिषी से ही कुंडली तैयार करवाना चाहिए।

कुंडली में वर्ष, फल का भी विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहिए। जीवन में यदि कोई विपरीत समय आने वाला होता है, तो उसकी भी जानकारी आप कुंडली से पहले प्राप्त कर सकते हैं। उसके लिए किसी अच्छे विद्वान से उसका मार्गदर्शन प्राप्त करके निराकरण कर सकते हैं।

जिसके लिए विशेष पूजा फलदाई होता है। जीवन में जो घटनाएं घटने वाली होती है, वह घटना सूक्ष्म रूप में होकर के समाप्त हो जाती है। इसीलिए उसकी जानकारी प्राप्त करके पहले आप उसका निराकरण पूजा पाठ करा लेंगे तो जीवन में जो भी समस्याएं आने वाली होगी, वह समस्याएं ज्यादा प्रभावकारी नहीं होगी।

क्योंकि शास्त्रों में भी बताया गया है कि अच्छे कर्म, भगवान की पूजा, पाठ, आराधना करने से जो बड़ी घटनाएं भी होने वाली होती है, वह घटनाएं सूक्ष्म रूप में हो जाती है। जिससे उस व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव बहुत कम दिखाई पड़ता है। इसीलिए कुंडली का हर 3 महीना, 6 महीना पर अध्ययन करके सही परिणाम पर ध्यान देना चाहिए।

श्रीमद् भागवत कथा अंतर्गत शुकदेव जी राजा परीक्षित को भगवान श्री कृष्णा के जीवन का विस्तार से वर्णन सुना रहे हैं। राज भवन में सभी लोग उत्सव मना रहे थे और यशोदा मैया अपने लाल के सोने के लिए बैलगाड़ी पर व्यवस्था कर दी थी।

कंस ने राक्षस शकटासुर को कृष्ण भगवान को करने के लिए गोकुल में भेजता है। शकटासुर विकराल रूप बनाकर बैलगाड़ी पर चढ़ के बैलगाड़ी के नीचे बालक कृष्ण को दबा के मारना चाहा तभी भगवान श्री कृष्ण का नींद टूट गया।

तभी कृष्ण भगवान बहुत जोर-जोर से रोने लगे और रोते हुए हाथ पैर मारने लगे। जिससे उनके पैरों से लगकर बैलगाड़ी पलट गया। बैलगाड़ी पलटने के कारण सट्टा शकटासुर बैलगाड़ी के नीचे दब गया और मर गया।

श्री कृष्णा लगभग एक दो महीना के हो गए थे एक दिन यशोदा मैया उन्हें दूध पिला रही थी तभी कृष्ण भगवान ने योग माया के द्वारा धीरे-धीरे अपना वजन बढ़ाने लगे। यशोदा मैया बालक कृष्ण को नीचे बैठा दी।

थोड़े ही देर बाद कंस के द्वारा भेजा गया तीसरा राक्षस तृणावत एक बवंडर का रूप लेकर कृष्ण भगवान को करने के लिए आ गया। तृणावत में उस बवंडर में भगवान श्री कृष्ण को लेकर उड़ने लगा। तभी भगवान श्री कृष्ण ने उस तृणावत का गला पकड़ के उसे भी मार दिया।

कुछ समय बीतने के बाद एक दिन वासुदेव जी यदुवंशियों के पुरोहित गर्ग ऋषि के पास गए। उन्होंने गर्ग ऋषि से कहा कि मेरे दो पुत्र मथुरा में पल रहे हैं एक रोहिणी पुत्र और एक यशोदा पुत्र के रूप में आप कोई भी उपाय लगाकर उनका नामकरण संस्कार कर दीजिए। लेकिन किसी को भी इसके बारे में पता ना चले। तब गर्ग ऋषि एक दिन गोकुल पहुंचे।

जहां पर नंद बाबा ने उनका बहुत आदर सत्कार किया। गर्ग ऋषि को देखकर नंद बाबा ने अपने लाल और रोहिणी पुत्र के नामकरण संस्कार के लिए इच्छा बताएं। गर्भ ऋषि ने बताया कि रोहिणी के पुत्र का नाम बलराम, बलदेव, संघर्षण होगा।

तब गर्ग ऋषि ने कहा कि यशोदा का बालक नारायण के समान बलवान होगा, पपियाें का नाश करेगा इसलिए इसका नाम कृष्णा रखा जाएगा। इस तरह नामकरण संस्कार पूरा हुआ।

धीरे-धीरे भगवान कृष्ण बड़े होने लगे उनके बाल लीलाएं देखकर लोग मोहित होने लगे। घुटनों के बल चल के कभी बछड़े से खेलते हैं कभी गाय से खेलते, कभी गोपियों के गोद में बैठते।

इस तरह कृष्ण भगवान की लीलाएं पूरे गोकुल में लोगों को प्रभावित करने लगे कृष्ण और बलराम जी थोड़े बड़े हुए तो गोपियों के माखन चुरा के खाने लगे।

किसी गोपी का मटकी फोड़ देते। इस तरह अनेकों लीलाएं गोकुल में भगवान श्री कृष्णा किए थे। गोपिया जब भी यशोदा जी से शिकायत करने के लिए आती यशोदा जी कभी नहीं मानती थी।

इस तरह बाल लीलाएं करते-करते भगवान श्री कृष्णा थोड़े बड़े हो गए थे। तभी एक दिन अचानक गर्ग ऋषि वहां पर आए, तोम नंद जी उन्हें अपने घर पर भोजन का निमंत्रण दे दिए।

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