
रोहतास संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट
रोहतास (बिहार ): सहिष्णुता एक सार्वभौमिक वैश्विक मूल्य है, जिसकी महत्ता सर्वत्र समरसता स्थापित करने में है । जहाँ तक भारत जैसे विविधिता वाले राष्ट्र की बात है, यहाँ इसकी भूमिका सामाजिक- सांस्कृतिक विरासत के रूप में दृष्टिगत है।
लम्बी ऐतिहासिक परम्परा ही नहीं बल्कि संविधान के अनुच्छेद 351 में सामासिक संस्कृति की अपेक्षा ने इस विचार को पुष्पित एवं पल्लवित किया है |
इतना ही नहीं पंचशील के एक तत्व के रूप में मान्यता देकर हमने इसे वैश्विक रूप में स्थापित किया है | वर्तमान समय में धर्म किसी न किसी रूप में राजनीति के केंद्र में है । राष्ट्रवाद एवं उग्र राष्ट्रवाद पक्ष एवं विपक्ष का मुद्दा बना हुआ है ।
गाँधी के दर्शन में धर्म की स्थिति सर्वोपरि है | धर्म उनके मार्गदर्शन का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है | उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मेरे राजनीति में आने का कारण धर्म की सेवा है और धर्म की सेवा कहीं न कहीं मानव की सेवा है |
उन्होंने धर्म एवं राजनीति के समन्वयात्मक स्वरुप को स्वीकारा है | गाँधी के धर्म सम्बन्धी विचार जीवन के उच्च आदर्शों को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है |
गाँधी ने अर्थ और मोक्ष, धर्मनिरपेक्षता और आध्यात्मिकता के बीच सहिष्णुता का मार्ग दिखाया, जो वर्तमान समस्याओं के निराकरण का सर्वोत्तम समाधान सिद्ध होता हुआ प्रतीत होता है |
धर्म से गाँधी का तात्पर्य किसी भी प्रचलित धर्म से न होकर सभी धर्मों के मूल में स्थापित उस तत्व से है जो उस सृष्टिकर्ता का साक्षत्कार कराता है |
गाँधी के अनुसार सनातन धर्म में कट्टरता, धर्मान्धता या हठवादिता का अभाव है | उनका स्पष्ट मानना था की उदारता एवं सहिष्णुता का भाव ही सनातन धर्म का सिद्धांत रहा है |
अपने दर्शन में गाँधी जी ने धार्मिक सहिष्णुता की अहिंसात्मक व्याख्या की है | उनके अनुसार सब धर्म सच्चे है किन्तु पूर्ण नहीं , इसलिये उनमे दोष हो सकते हैं | धार्मिक सहिष्णुता का अर्थ आपने धार्मिक —‘सर्वधर्म समभाव’ समझा है |
निःसंदेह गाँधी जी जन्म से हिंदू थे किन्तु अन्य धर्मों के प्रति उनका दृष्टिकोण उदार था | उन्होंने अन्य धर्मों, विशेषकर इसाई धर्म के सिद्धांतों के साथ संपर्क का स्वागत किया |
वे मानते थे कि यदि हम चाहते है कि दूसरे धर्म के लोग हमारा सम्मान करे तो हमे भी उनके प्रति सहानुभूति का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए | वास्तव में गाँधी एक ऐसे धर्म की तलाश को अभिप्रेरित करते है जो हिन्दू, इस्लाम,इसाई धर्म से परे हो |
गाँधी जी की धार्मिक सहिष्णुता को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि एक बार सी.एफ. एंड्रयूज से बात-चित के क्रम में उन्होंने कहा था कि —–यदि कोई व्यक्ति बाइबिल में विश्वास करना चाहता है तो उसे करने दे, लेकिन उसे अपना धर्म क्यू त्यागना चाहिए ?
इस धर्मान्तरण का मतलब वैश्विक शांति नहीं होगी …..मेरा मानना है कि सभी महान धर्म मूल रूप से समान है | हमें अन्य धर्मों के प्रति भी वैसा सम्मान का भाव रखना चाहिए जैसा अपने प्रति अपेक्षा रखते है |
धर्म परिवर्तन एवं धार्मिक एकता पर गाँधी ने स्पष्ट विचार व्यक्त किया है | धर्म परिवर्तन व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों हो सकता है | गाँधी जी को यह किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है | वे सदा इसे अनुचित मानते थे क्योंकि यह डर,जबरदस्ती एवं प्रलोभन पर आधारित होता है |
उनका कहना था की यदि मेरा वश चलता तो मै इसके अतिरिक्त कि मनुष्य अपने चरित्र से दूसरे पर प्रभाव डाले, सभी प्रकार के धार्मिक प्रचार बन्द करा देता |
गाँधी की दृष्टि में धर्मों में भेद-भाव करना या किसी धर्म विशेष को छोटा बड़ा कहना हिंसा के अतिरिक्त कुछ नहीं है | यही कारण है कि वे सभी धर्मों को सम्मान के भाव से देखने की वकालत करते है |
इसी आधार पर ही वे सभी धर्मों में एकता को स्वीकार करते हुए किसी भी धर्म को ऊँचा या नीचा नहीं मानते | उनके अनुसार धर्म तो स्वरूपगत सभी अच्छे है पर उनके मानने वाले बुरे हो सकते है |
यह तो धर्म को धारित कर आचरण पर निर्भर करता है कि चरित्र निर्माण से लेकर व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति किस रूप में सामने आयी | अनुयायियों को देखकर किसी धर्म के बारे में कोई राय नहीं बनानी चाहिए |
स्वभाव से धार्मिक होने के बावजूद गाँधी धार्मिक पाखंड, अनुष्ठानों, रीती-रिवाजों , परम्पराओं, हठधर्मिता और अन्य औपचारिकताओं में विश्वास नहीं करते थे |
स्वामी विवेकानंद एवं रविन्द्र नाथ टैगोर की तरह गाँधी का धर्म मंदिरों, चर्चों, पुस्तकों, अनुष्ठानों और अन्य बाहरी रूपों तक सीमित नहीं था |
निश्चय ही गाँधी की धर्म की अवधारणा किसी औपचारिकता से बंधी हुई नहीं है | गाँधी के अनुसार ईश्वर के अनेकों नाम हो सकते हैं जैसे ईश्वर, शिव, विष्णु, राम, कृष्ण, यहोवा, अल्लाह इत्यादि, जो उस परंपरा के अनुसार है।
जिसमे एक व्यक्ति का पालन- पोषण होता है | यहाँ गाँधी का प्रश्न है –क्या मुसलमानों के लिए एक ईश्वर है और हिन्दुओं, पारसियों एवं ईसाईयों के लिए दूसरा ?
महात्मा गाँधी के अनुसार परमात्मा का कोई धर्म नहीं होता है | जो व्यक्ति दूसरों के दुःख-दर्द को महसूस करता है वही असली धार्मिक है | गाँधी के धार्मिक दर्शन संदेह से परे है क्योंकि गाँधी स्वयं अपने सिद्धांतों का पालन किया था |
गाँधी दर्शन सैद्धांतिक नहीं व्यवहारिक है | वास्तव में गाँधी विचारक नहीं सत्य के उपासक थे | उनका एक ही विचार है—सत्य की खोज | चाहे वह जीवन के किसी भी क्षेत्र से सम्बंधित हो |
किसी भी विचारधारा से उनका विरोध नहीं है | सहिष्णुता और दूसरों के सम्मान की बात करते हुए उनका स्पष्ट मत है कि— मेरा विश्वास व्यापक है जो ईसाईयों का विरोध नहीं करता ……यहाँ तक कि सबसे मुसलमानों का भी नहीं |
गाँधी के उपर्युक्त विचार वर्तमान भारतीय समाज के लिए विशेषकर धर्म की व्याख्या के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है | गाँधी भारत की समावेशी चिंतन परंपरा के न केवल प्रतिनिधि है बल्कि सहिष्णुता की संस्कृति के वाहक भी |
हमारे समस्याओं का निदान हमारे ही दर्शन को आत्मसात कर होगा न कि पश्चिम का अन्धानुकरण करके | गाँधी दर्शन अपने आप में पूर्ण है ,आवश्यकता सिर्फ इसे निश्चल भाव से आत्मसात करने की है |