[wpdts-weekday-name] [wpdts-day]/ [wpdts-month]/ [wpdts-year] 

कुण्डवा चैनपुर SSB के सब इंस्पेक्टर जितेंद्र कुमार के नेतृत्व में हुआ “बॉर्डर यूनिटी रन” का आयोजनGM छत्रसाल सिंह ने बख्तियारपुर, राजगीर, तिलैया, कोडरम, धनबाद, रेलखंडों का किया विंडो निरीक्षण।आपूर्ति पदाधिकारी का स्थानांतरण होने पर की गई विदाई सह सम्मान समारोहचालक सिपाही परीक्षा में फर्जी मजिस्ट्रेट बनकर सेंटर में घुसे सॉल्वर गैंग, एक परीक्षार्थी समेत चार गिरफ्तारदानापुर मंडल में नवंबर माह के टिकट जाँच अभियान में TTE, DY CIT, CIT ने रचा इतिहास, 43 करोड़ से भी ज्यादा का राजस्व रेल को दिया।जमुई चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के नव निर्वाचित पदाधिकारियों, सदस्यों के शपथ ग्रहण समारोह में…..रेल भवन के लिए रेल आंदोलन के सूत्रधार मुख्य संयोजक मनोज सिंह यादव से डीएम अभिलाषा शर्मा के द्वारा भेजा अनुरोध पत्र बुनियादी साक्षरता परीक्षा हर्षोल्लास से हुई संपन्नचंदौली मुख्यालय में दिनदहाड़े स्नैचिंग की वारदात, राहगीर के गले से सोने का लॉकेट छीनकर भाग रहे चोर को भीड़ ने दबोचाशिक्षक मणिनाथ पाठक सिर्फ शिक्षक नहीं थे बल्कि वे समाज के एक कुशल नैतिक मार्गदर्शक भी थे: शिक्षकगण
बिहारराज्यरोहतास

संगत से व्यक्ति का व्यवहार बदल जाता है: श्री जीयर स्वामी जी महाराज 

संगत से व्यक्ति का व्यवहार बदल जाता है: श्री जीयर स्वामी जी महाराज

श्रीमद् भागवत सुनने से प्रेत को भी मुक्ति मिल जाती है।

रोहतास दावथ संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट 

दावथ ( रोहतास): चातुर्मास्य व्रत परमानपुर में भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने बताया कि संगत से व्यवहार बदलता हैं। अगर कोई बुरा व्यक्ति है और उसका संगत अच्छे लोगों के साथ हो जाता है। तब उसका भी व्यवहार सही हो जाता है।

वहीं अगर सही लोग का संगत बुरे लोगों के साथ हो जाएगा तो उनका भी व्यवहार खराब हो जाता है। जैसे कि स्वामी जी ने एक धुंधकारी और गोकर्ण जी का कथा बताएं।

धुंधकारी कुसंगत में पड़कर अपने जीवन को बर्बाद कर लिया था। धुंधकारी का मतलब जो व्यक्ति हमेशा अनीति, अन्याय, अधर्म के पथ पर चल कर अपना जीवन जीता है। उसी को धुंधकारी कहते हैं।

स्वामी जी ने बताया कि प्राचीन काल में तुंगभद्रा नदी के तट पर एक गांव था। जहां पर बहुत ही धनवान, वैभवकारी, विद्वान, दानी, सदाचारी ब्राह्मण रहते थे। जिनका नाम था आत्मदेव।

उनका विवाह एक ऐसी औरत से हो गया था जो कि बहुत ही कर्कशा और झगड़ालू थी। मिडिया संचालक रविशंकर तिवारी ने बताया कि स्‍वामी ने कहा कि आत्मदेव जी की कोई संतान नहीं थी।

उन्होंने बहुत पूजा पाठ, तुलसी पूजा, गाय पूजा सब किए। लेकिन कोई संतान नहीं हुई। आत्मदेव जी इन सबसे परेशान होकर एक दिन घर छोड़कर चले गए और आत्महत्या करने के लिए सोचने लगे। एक जंगल में जाकर वह बैठे थे।

तभी वहीं सरोवर के पास एक संन्यासी संध्या वंदन करके लौट रहे थे। तभी वह आत्मदेव को देखें। सन्यासी ने आत्मदेव जी से पूछे कि क्या तुम सन्यासी बनना चाहते हो। क्यों इस जंगल में आए हो। तब आत्मदेव जी ने कहा कि मुझे कोई संतान नहीं है। मैं संतान चाहता हूं।

तब संन्यासी ने कहा कि आपका तो सात जन्म तक संतान का योग नहीं है। तब आत्मदेव स्वामी जी से कहने लगे कि आप मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मुझे संतान हो जाए। नहीं तो मैं अपनी जान दे दूंगा। जिसका दोष आप पर लगेगा।

जिसके बाद संन्‍यासी सोचने लगे कि यह आदमी मर गया तो मुझ पर दोष लगेगा। तब महात्मा जी ने एक फल दिया और कहा कि अपनी पत्नी को खिला देना। आत्मदेव जी ने अपनी पत्नी को वह फल दिया। तब उनकी पत्नी ने सोचा फल खाकर किसी का बच्चा होता है।

मेरे पति का सन्यासी ने मति मार दिया है। आत्मदेव की पत्नी ने अपनी बहन से बताया कि एक संन्यासी ने फल दिया है जिससे मुझे संतान होगा। तब उसकी बहन ने कहा कि इस फल को तुम अपनी बंधिया गाय को खिला दो।

जिससे उस सन्यासी के फल का परिणाम पता चल जाएगा। मैं अपना बच्चा तुम्हें दे दूंगी। फिर समय बीतने पर उसको बचा हुआ जो उसने अपना बच्चा आत्मदेव की पत्नी को दे दिया।

कुछ दिन बाद गाय से भी एक बालक ही पैदा हुआ। जिसका कान गाय जैसा था और शरीर आदमी जैसा था। दोनों बालक बड़े हो गए। जिस बालक का कान गाय का था। उसका नाम गोकर्ण रखा गया।

वहीं आत्मदेव की पत्नी धुंधली का बेटा का नाम धुंधकारी रखा गया। गोकर्ण एक बहुत बड़े पंडित विद्वान हुए। वहीं धुंधकारी बहुत बड़ा उपद्रवकारी हुआ। जो कि अपराध में ही उसका जीवन बितने लगा।

आत्मदेव जी सोचते कि मेरा संतान क्यों हो गया। पहले जिस घर में शास्त्र वेद पुराण की किताबें भरी रहती थी। उसमें धुंधकारी ने मांस मछली और शराब की बोतल भर के रखा था। एक दिन आत्‍मदेव जी उससे परेशान होकर जंगल में चले गए। जिसके बाद धुंधकारी अपने माता को भी मारने लगा।

एक दिन उसकी माता भी मर गई। तब एक दिन गोकर्ण जी भी घर छोड़कर तीर्थ यात्रा के लिए निकल गए। फिर धुंधकारी और उपद्रव और हिंसा करने लगा।

वेश्याओं को लाकर अपने घर में रखने लगा। उनके लिए चोरी तक करने लगा। एक दिन राजा के घर से चोरी करके बहुत सारा सामान लाया। तब वेश्याओं ने सोचा इतना सामान राजा के घर से चोरी करके लाया है। राजा के सैनिक आएंगे तो हमें भी पकड़ेंगे।

इसलिए उन्होंने धुंधकारी को शराब पिलाकर मार दिया और आंगन में ही मिटी में दबा दिया। फिर वह वेश्‍या सारा धन लेकर चली गई। तब धुंधकारी प्रेत बन गया। जब गोकर्ण जी आए तो उन्होंने देखा कि सारा घर सुना श्‍मशान जैसा बन गया था।

वहीं धंधकारी प्रेत बनकर लटका हुआ था। तब गोकर्ण जी ने पूछा कि तुम्‍हारी ऐसी हालत कैसे हुई। जिसके बाद धुधकारी ने सारी बात बताई।

तब गोकर्ण जी ने कहा कि मैं गया में जाकर तुम्हारा पिंडदान करूंगा। तर्पण करूंगा। तब तुम्हें मोक्ष मिलेगा। धुंधकारी ने बताया कि आप कितना भी पिंडदान करें, कुछ नहीं होने वाला हैं। क्योंकि यह मेरे कर्मों का फल है।

उसके बाद गोकर्ण दूसरे दिन सुबह स्नान करके सूर्य भगवान को जल देकर पूजा अर्चना किए और इसका उपाय ढूंढे। तब उन्हें पता चला कि श्रीमद् भागवत गीता का श्रवण करने पर प्रेत आत्मा से भी मुक्ति मिल सकती है।

श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा की श्रीमद् भागवत सुनने से प्रेत को भी मुक्ति मिल जाती हैं। तब गोकर्ण जी ने बड़े-बड़े पंडित विद्वानों को बुलाकर श्रीमद् भागवत गीता का आयोजन किया।

जिसमें पंडितों से संकल्प कराकर धुंधकारी के लिए श्रीमद् भागवत शुरू किए। 7 दिन तक श्रीमद् भागवत गीता का श्रवण करने के बाद धुंधकारी को प्रेत आत्मा से मुक्ति मिल गया और वह देवलोक में प्रवेश कर गया।

सूत जी ने धुंधकारी और गोकर्ण जी का कथा सबको बताया। तब सौनक कृषि ने पूछा कि श्रीमद् भागवत गीता का श्रवण करने का कैसा विधान है। यह कैसे श्रवण किया जाता है। सूत जी ने बताया कि जिसको जैसे कथा श्रवण करना है कर सकता है।

कोई उपवास रखकर, दो बार खाना खाकर, फलाहार करके भी श्रीमद् भागवत महापुराण का श्रवण कर सकते है। सूत जी ने बताया कि अगर संभव हो तो अकेले भी इसको कर सकते हैं। नहीं तो कई लोग मिलकर भी श्रीमद् भागवत का श्रवण कर सकते हैं।

Check Also
Close