
सृष्टि के प्रारंभ से ही श्रीमद् भागवत कथा है: श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज
रोहतास दावथ संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट प
दावथ (रोहतास) जब से सृष्टि है तभी से ही श्रीमद् भागवत कथा है। परमानपुर चतुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा की आज से 50000 करोड़ वर्ष पहले से सृष्टि है तथा उसी समय से सभी धार्मिक ग्रंथ भी हैं। वेद, पुराण, उपनिषद्, इतिहास इत्यादि भी सृष्टि की शुरुआत से ही है।
जितने भी धार्मिक ग्रंथ हैं। उसकी रचना समय-समय से अन्य लोगों के द्वारा की गई है। लेकिन जिस प्रकार से कोई भी घटना पहले घटती है। जबकि उसकी लेखनी या रचना बाद में होती है। उसी प्रकार से जब इस पूरे ब्रह्मांड में केवल एक मात्र श्रीमन नारायण थे।
उस समय से श्रीमद्भागवत इत्यादि ग्रंथ भी है। अब आपके मन में एक सवाल होगा कि श्रीमद् भागवत की रचना आज से 6000 वर्ष पहले व्यास जी के द्वारा किया गया तो श्रीमद् भागवत आज से 50000 करोड़ वर्ष पहले कैसे था।

सृष्टि के प्रारंभ में भगवान श्रीमन नारायण और लक्ष्मी जी यही दो लोग थे। उस समय सबसे पहले भगवान श्रीमन नारायण के द्वारा श्रीमद् भागवत कथा लक्ष्मी जी को सुनाया गया।
लक्ष्मी जी ने भगवान श्रीमन नारायण से विनती किया कि भगवान सृष्टि का विस्तार किया जाए। मिडिया संचालक रविशंकर तिवारी ने बताया कि स्वामी जी ने बताया कि जिसके बाद भगवान श्रीमन नारायण के नाभि से कमल और कमल से ब्रह्मा जी हुए। जिसके बाद ब्रह्मा जी के द्वारा इस पूरे सृष्टि का विस्तार किया गया।
आगे अलग-अलग समय पर श्रीमद् भागवत कथा को ब्रह्मा जी के द्वारा नारद जी को सुनाया गया नारद जी के द्वारा व्यास जी को श्रीमद् भागवत की रचना करने के लिए कहा गया। इस प्रकार से श्रीमद् भागवत कथा को कई लोगों के द्वारा अलग-अलग लोगों को सुनाया गया।
लेकिन श्रीमद् भागवत को पहले किसी ने लेखनी के रूप में नहीं लिखा। इसीलिए जब व्यास जी के द्वारा श्रीमद् भागवत को लेखनी के रूप में लिखा गया तब से कहा जाता है कि श्रीमद् भागवत की रचना व्यास जी के द्वारा किया गया। लेकिन पहले श्रीमद् भागवत, वेद, पुराण, ग्रंथ, उपनिषद श्रुति के रूप में था। यानि कहने और सुनने के रूप में ही था। बाद में समय-समय से इसकी रचना अलग-अलग महापुरुषों के द्वारा की गई।
सृष्टि की रचना कैसे हुई
ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करते समय सबसे पहले सनक, सनंदन, सनातन, और सनत्कुमार चार बालकों की सृष्टि किए। लेकिन यह चारों बालक ब्रह्मचारी बन गए। तब भगवान ब्रह्मा जी उदास हो गए कि यह सृष्टि कैसे चलेगी।
तभी ब्रह्मा जी के भौंहे से पसीना गिरकर एक बालक पैदा हुआ। तब वह बालक ब्रह्मा जी से पूछने लगा कि आप मेरा नाम बताइए मेरा काम बताइए। जिसके नाम ब्रह्मा जी ने रूद्र रखा। वहीं भगवान शंकर जी के नाम से भी जाने जाते हैं।
ब्रह्मा जी ने कहा कि आप सृष्टि की रचना करिए। जिसके बाद भगवान शंकर जी ने सृष्टि की रचना तो शुरू किए। लेकिन पूरे सृष्टि में उथल-पुथल मचने लगा। क्योंकि उन्होंने बाघ सिंह भूत प्रेत पिशाच सांप बिच्छू जितने विशैले और खूंखार जीव थे।
उन्हें प्रकट कर दिया। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि यह तो हमारी सृष्टि को समाप्त कर देंगे। जिसके बाद शंकर जी तपस्या करने चले गए और बाद में 11 रुद्र और 11 रुद्राणी प्रकट किए। फिर ब्रह्मा जी ने 10 ऋषि को प्रकट किए।
ब्रह्मा जी के छाती से धर्म और पीठ से अधर्म हुआ। फिर ब्रह्मा जी से राक्षस भी प्रकट हो गए। आगे ब्रह्मा जी ने सृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए मनु और शतरूपा को प्रकट किया।
ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि आप दोनों पति-पत्नी हैं और पति-पत्नी के मर्यादा के साथ रहते हुए आपको सृष्टि का विस्तार करना है। फिर आगे चलकर मनु और शतरूपा से दो लड़का और 3 लड़की हुई। वही मनु जी ने मनुस्मृति का रचना किया। जिसमें मानव समाज सभ्यता संस्कृति के बारे में बताया गया।
श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद् भागवत के प्रथम स्कंद के प्रथम अध्याय के प्रथम श्लोक के बारे में चर्चा की। स्वामी जी ने बताया कि श्रीमद् भागवत महापुराण में 18000 श्लोक है। उन्होंने बताया कि इसे एक-एक करके किसी ने गिनती नहीं किया है।
लेकिन विद्वानों के द्वारा यह एक अनुमान लगाया गया है कि 18000 श्लोक है। स्वामी जी ने बताया कि श्रीमद् भागवत महापुराण में संस्कार, सभ्यता, संस्कृति की चर्चा की गई है।
स्वामी जी ने भारतीय सभ्यता संस्कृति में महिलाओं के घूंघट पर भी चर्चा किया। उन्होंने बताया कि जब मध्यकालीन युग में कुछ उपद्रवकारी आक्रमणकारी थे। जिन्होंने हमारे देश की महिलाओं पर गलत नजर डाला।
जिससे बचने के लिए हमारे देश की महिलाएं घूंघट करने लगी। अपने संस्कार, संस्कृति, मर्यादा परंपरा को बचाने के लिए उन्होंने घूंघट करना शुरू कर दिया। यह हमारा वैदिक परंपरा नहीं है।
स्वामी जी ने कहा कि कभी हमने यह नहीं सुना है कि रुकमणी जी ने वासुदेव जी को देखकर घूंघट किया है सीता जी ने दशरथ राजा को देखकर घूंघट किया है। यह घूंघट का परंपरा हमारे देश में मध्यकालीन से कुछ असामाजिक तत्वों के कारण ही शुरू हुआ है।
स्वामी जी ने आज के फैशन के बारे में भी कहा कि आजकल लड़कियां या महिलाएं अपने पहनावा रहन-सहन संगत पर थोड़ा सा ध्यान दे दे तो किसी भी असामाजिक तत्वों के द्वारा उन्हें परेशान नहीं किया जा सकता है। स्वामी जी ने बताया कि श्रीमद् भागवत महापुराण की रचना आज से लगभग 6000 वर्ष पहले भगवान वेदों व्यास जी ने की थी।
उस समय द्वापर युग का समापन और कलयुग का आरंभ होने वाला था। उन्होंने सबसे पहले श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा अपने बेटे शूकदेव जी को और सूत जी को सुनाया।
जियर स्वामी जी ने कहा कि अगर श्रीमद् भागवत कथा करते हैं तो उसमें एक भी श्लोक छोड़ना नहीं चाहिए। सभी श्लोक को पढ़ना चाहिए। क्योंकि भागवत में जितने श्लोक हैं। सभी भगवान के साक्षात अक्षरमय स्वरूप है। श्रीमद् भागवत महापुराण में 18000 श्लोक, 335 अध्याय और 12 स्कंद है।
स्वामी जी ने बताया कि सृष्टि का आरंभ आज से करीब 50000 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। जब समय भगवान श्रीमन नारायण ने सृष्टि का विचार करने के बारे में सोचे। उस समय दुनिया में श्रीमन नारायण के सिवा कोई नहीं था। ना ब्रह्मा ना विष्णु।
जिसके बाद महालक्ष्मी देवी जी ने विचार किया कि प्रभु आप अकेले सृष्टि की रचना करेंगे। तब भगवान श्रीमन नारायण के सत संकल्प से शक्ति स्वरूपा महालक्ष्मी देवी जो भगवान श्रीमन नारायण की अहलादीनी शक्ति है वह इस संसार में आई। तब लक्ष्मी जी के आग्रह से भगवान श्रीमन नारायण ने सृष्टि का विस्तार किया।
सबसे पहले तो भगवान श्रीमन नारायण ने सृष्टि विस्तार करने के बारे में नहीं सोचा। लेकिन लक्ष्मी जी ने कहा कि इतने बड़े सृष्टि में हम अकेले ही रहेंगे। तब भगवान श्रीमन नारायण के नाभि से कमल निकला। कमल से एक जीव निकाला।
बाद में उसी का नाम ब्रह्मा जी पड़ा। आगे चलकर ब्रह्मा जी से ही सृष्टि का निर्माण हुआ। स्वामी जी ने बताया कि सबसे पहले श्रीमन नारायण ने लक्ष्मी जी को श्रीमद् भागवत कथा सुनाएं। बाद में चलकर लक्ष्मी जी ने अपने भक्त, शिष्य विश्वकसेन जी को यह कथा सुनाई।
श्रीमन नारायण ने हीं एक बार शंकर जी को एक बार ब्रह्मा जी को श्रीमद् भागवत कथा सुनाए। वैसे ही नारद जी ने भी एक बार ब्रह्मा जी से कथा सुनी एक बार शंकर जी से कथा सूने एक बार अपने बड़े भाई सनक, सनंदन, सनातन, और सनत्कुमार से सुनी।
गोकर्ण जी ने धुंधकारी को सुनाया। फिर शूकदेव जी ने राजा परीक्षित तो सुनाया। इस तरह अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग समय पर श्रीमद् भागवत की कथा सुनाएं।
भागवत कथा कब आरंभ करना चाहिए
अगर कोई अपने घर पर श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन करता है तो उसे दो पक्ष में श्रीमद् भागवत कथा शुरू नहीं करना चाहिए। जैसे कि कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष उस बीच में दोनों आता है।
स्वामी जी बताएं की द्वादशी के दिन श्रीमद् भागवत कथा का शुरुआत नहीं करना चाहिए। अगर कथा के अंत में द्वादशी आता है तो उसमें कोई दोष नहीं होता है। क्योंकि द्वादशी के दिन ही सूत जी महाराज नैमिषारण्य में श्रीमद् भागवत कथा कह रहे थे। उसी समय उनका देहावसान हो गया।
स्वामी जी ने बताया कि भगवान वेदों व्यास ने श्रीमद् भागवत महापुराण की रचना देवताओं के प्रेरणा से भगवान की आज्ञा से ऋषियों के आग्रह से शुरू किए। मानव के कल्याण के लिए ताकि मानव कहीं भटक न जाए। उनके मन में और दिल में किसी तरह की चंचलता ना हो।
स्वामी जी ने बताया कि वेद पुराण शास्त्र भागवत यह सभी सृष्टि की रचना होने के समय से ही है। बस इसको अक्षर स्वरूप में बाद में रचना की गई। स्वामी जी ने बताया कि जब भगवान श्री राम के लंका से वापस लौटने का समाचार अयोध्या वासी सुने तो वेद पुराण शास्त्र श्रीमद् भागवत की कथा करने लगे।
इससे प्रमाणित होता है कि वेद पुराण शास्त्र इतिहास श्रीमद् भागवत सब सृष्टि की रचना के समय से है। बाद में इसको लेखनी स्वरूप अक्षर स्वरूप में रचना की गई।




















