
- कुकुरमुत्ते की तरह खुल रही है प्राइवेट स्कूल, शिक्षा माफियाओं की पौ बारह
- सरकारी मानक की उड़ रही है धज्जियां, अभिभावकों का शोषण जारी, प्रशासन लाचार
रिपोर्ट अरविंद वर्मा
खगड़िया। प्रशासनिक लचर पचर व्यवस्था और शिक्षा माफिया पर निरंकुश होने के कारण ज़िले में कुकुरमुत्ते की तरह प्राइवेट स्कूल खुल रहे हैं। लंबे लंबे वादे और सपने दिखा कर जिले की भोली भाली जनता/अभिभावक को ठगने का कार्य कर रहे हैं ऐसे स्कूलों के संचालक।
अब तो राजनीति करने और अपने आपको बड़ा नेता समझने वाले सख्श भी शिक्षा माफिया बनने के चक्कर में दनादन स्कूल खोल रहे हैं। ज़िले में स्कूल खुले अच्छी बात है पर शिक्षाविदों द्वारा, न कि शिक्षा माफियाओं और राजनीति करने वाले नेताओं द्वारा।
स्कूल खोलने हेतु सरकारी मापदंड है, पर इसको धत्ता बताते हुए नए नए बच्चों के अभिभावकों से प्रवेश शुल्क, नामांकन शुल्क, परिवहन शुल्क, विकास शुल्क, क्रीड़ा शुल्क आदि मनमाने ढंग से वसूले जा रहे हैं।
ज़िले की बेचारी जनता शिक्षा माफियाओं के शाद जाल में फंस कर दलालों के माध्यम से फंस कर नामांकन भी करा रहे हैं। मजे की बात तो यह है कि ऐसे सैकड़ों विद्यालय पहले से ही चल रहे हैं, जो सरकारी मानक को पूरा नहीं कर रहे हैं।
संबंधित शिक्षा पदाधिकारियों को एन केन प्रकरण अपने मायाजाल में डाल कर धड़ल्ले से स्कूल चल रहे हैं और लाखों लाख रुपए की उगाही कर रहे हैं।
चलो यह भी ठीक है, बेचारे शिक्षा माफिया का कहना है कि कि पूंजी लगते हैं हम तो कमाई कौन करेगा ? फिर सबों को देखना होता है। प्रशासनिक अधिकारियों से अच्छी ट्यूनिंग रखनी पड़ती है, चाय जैसे भी हो।
पॉलिटिकल धौंस हो या कुछ ले दे कर। शिक्षा का व्यापार करना है तो मैनेज करना ही होगा। पर्दे के पीछे क्या हो रहा है, इसे कौन जानता है? बच्चों के अभिभावकों को चाहिए सरकारी मापदंड पर नियुक्त किए गए शिक्षक, शिक्षिकाओं से शिक्षण कार्य ।
मगर शायद ही किसी स्कूल में ऐसा होता हो। ज़िले में ऐसे ऐसे शिक्षा माफिया हैं जो लगातार एक के बाद एक स्कूल खोले जा रहे हैं। ब्रांच ही ब्रांच नज़र आने लगा है।
आखिर इस तरफ़ ज़िले के आला अधिकारियों का ध्यान इस ओर क्यों नहीं है ? यह आम जनता की समझ से परे है। कुकुरमुत्ते की तरह खुलने वाले स्कूलों में ही किताब, कांपी, स्टेशनरी सामग्री, पोशाक, जूते, टाई बेल्ट आदि की बिक्री हो रही है।
स्कूल प्रबंधक की मर्जी जिस प्रकाशन की किताबें चलाए। प्रकाशकों से भी मोती मोटी रकम की वसूली स्कूल प्रबंधकों द्वारा की जा रही है।
जिसका खामियाजा बच्चों के अभिभावकों को झेलना पड़ता है। सामान्य डर से कई गुणा अधिक पुस्तकों का मूल्य चुका कर। बस परिवहन के नाम पर भी लूट जारी है।
ट्रांसपोर्ट विभाग की आंखों में भी धूल झोंक कर सरकारी नियमानुसार बच्चों के लिए उपयोग में लाई जा रही बसों में सरकार द्वारा निर्धारित सीटों से कई गुणा अधिक बच्चों को भेड़ बकरियों की तरह ठूंस ठूंस कर घरों से स्कूल लाने और पहुंचने का कार्य किया जा रहा है।
और तो और जिला मुख्यालय में कई ऐसे सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूलों में परिवहन में प्रयुक्त बस स्कूल कैंपस तक नहीं पहुंच पाता है। बच्चों को सड़क पर ही उतार दिया जाता है, जो सुरक्षा की दृष्टिकोण से काफी खतरनाक है।
ज़िला पदाधिकारी को चाहिए कि समय रहते ऐसे स्कूलों को चिह्नित कर आवश्यक कारवाई करें ताकि जिले के बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो सके और बेचारे अभिभावकों को शिक्षा माफियाओं के आर्थिक शोषण से बच सकें।
इसके लिए सघन जांच जरुरी है। ऐसे स्कूल के प्रबंधकों द्वारा शिक्षक, शिक्षिकाओं का भी शोषण कर रहे हैं सरकारी मापदंडों के अनुसार प्रति माह वेतन नहीं देकर।
शिक्षकों, शिक्षिकाओं को कम वेतन देना और अभिभावकों से स्कूल फीस के नाम पर मनमाना रकम वसूलना स्कूल प्रबंधकों का स्वभाव ही बन गया है। बिहार में सुशासन का राज है, डबल इंजन की सरकार है फिर भी बेचारे अभिभावक शिक्षा देने के नाम पर ठगे जा रहे हैं।