Monday 05/ 05/ 2025 

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माउंटेन मैन ‘दशरथ मांझी’

रोहतास दावथ संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट

दावथ ( रोहतास) स्वर्ग से धरती पर गंगा को लाने वाले तपस्वी राजा भगीरथ को कौन नहीं जानता,उनके प्रयासों के कारण ही भारत के लोग लाखों साल से माँ गंगा में स्नान, पूजन और आचमन से पवित्र हो रहे हैं। आज भी यदि कोई व्यक्ति नि:स्वार्थ भाव से लगातार किसी सद् संकल्प को लेकर काम करता रहे, तो उसे भगीरथ ही कहते हैं। ऐसे ही एक आधुनिक भगीरथ थे, दशरथ मांझी।

दशरथ मांझी का जन्म बिहार के गया प्रखण्ड स्थित गहलौर घाटी में रहते थे।उनके गाँव और शहर के बीच में एक पहाड़ था, जिसे पार करने के लिए 20 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता था। 1960 ई. में दशरथ मांझी की पत्नी फगुनी देवी गर्भावस्था में पशुओं के लिए पहाड़ से घास काट रही थी कि उसका पैर फिसल गया।दशरथ उसे लेकर शहर के अस्पताल गये; पर दूरी के कारण वह समय पर नहीं पहुँच सके, जिससे उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी।

बस, बात दशरथ के मन को लग गयी।उन्होंने निश्चय किया कि जिस पहाड़ के कारण मेरी पत्नी की मृत्यु हुई है, मैं उसे काटकर उसके बीच से रास्ता बनाऊंगा, जिससे भविष्य में किसी अन्य बीमार को अस्पताल पहुँचने से पहले ही मृत्यु का ग्रास न बनना पड़े।

उस दिन के बाद सुबह होते ही दशरथ औजार लेकर जुट जाते और पहाड़ तोड़ना शुरू कर देते, सुबह से दोपहर होती और फिर शाम; पर दशरथ पसीना बहाते रहते. अंधेरा होने पर ही वे घर लौटते. लोग समझते थे कि पत्नी की मृत्यु के कारण इनके मन-मस्तिष्क पर चोट लगी है। उन्होंने कई बार दशरथ को समझाना चाहा; पर वे उनके संकल्प को शिथिल नहीं कर सके।

अन्ततः 22 साल के लगातार कठिन परिश्रम के बाद पहाड़ ने हार मान ली।दशरथ की छेनी, हथौड़ी के आगे सन् 1982 में पहाड़ ने घुटने टेक दिये और पहाड़ ने रास्ता दे दिया।यद्यपि तब तक दशरथ मांझी का यौवन बीत चुका था.

पर 20 किलोमीटर की बजाय अब केवल एक किलोमीटर की पगडण्डी से शहर पहुँचना सम्भव हो गया । तब उनका मजाक उड़ाने वाले लोगों को उनके दृढ़ संकल्प के आगे नतमस्तक होना पड़ा।अब लोग उन्हें “साधु बाबा” के नाम से बुलाने लगे।

दशरथ बाबा इसके बाद भी शांत नहीं बैठे।अब उनकी इच्छा थी कि यह रास्ता पक्का हो जाये, जिससे पैदल की बजाय लोग वाहनों से इस पर चल सकें. इससे श्रम और समय की भारी बचत हो सकती थी,पर इसके लिए उन्हें शासन और प्रशासन की जटिलताओं से लड़ना पड़ा।वे एक बार गया से दिल्ली पैदल भी गये; पर सड़क पक्की नहीं हुई। उनके नाम की चर्चा पटना में सत्ता के गलियारों तक पहुँच तो गयी; पर निष्कर्ष कुछ नहीं निकला।

इन्हीं सब समस्याओं से लड़ते हुए दशरथ बाबा बीमार पड़ गये. क्षेत्र में उनके सम्मान को देखते हुए राज्य प्रशासन ने उन्हें दिल्ली के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया, जहाँ 17 अगस्त, 2007 को उन्होंने अंतिम सांस ली।

देहांत के बाद उनका पार्थिव शरीर गाँव लाया गया।गया रेलवे स्टेशन पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. उनकी कर्मभूमि गहलौर घाटी में ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें भू-समाधि दी गई। राज्य शासन ने ‘पद्मश्री’ के लिए भी उनके नाम की अनुशंसा की।

दशरथ मांझी की मृत्यु के बाद बिहार के बच्चों की पाठ्यपुस्तक में एक पाठ जोड़ा गया है. उसका शीर्षक है- पहाड़ से ऊँचा आदमी. यह बात दूसरी है कि पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने वाले इस आधुनिक भगीरथ के संकल्प का मूल्य उनके जीवित रहते प्रशासन नहीं समझा।

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