Sunday 27/ 10/ 2024 

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प्रधानों की हर गतिविधियों पर होगी खुफिया एजेंसी की नजर, दरियादिली पड़ेगी महंगी

शराब, धन, कपड़ा और अन्य प्रलोभन के बल पर प्रधानी का चुनाव जीतने वालों के लिए बुरी खबर है। यदि लोकसभा चुनाव में प्रधान ने अपने चुनाव जैसा फंडा अपनाया तो उनको प्रधानी जाने तक की नौबत आ सकती है।

 

लोकसभा चुनाव 2024 में प्रत्याशी से सावधान रहने की सलाह

किसी अनैतिक काम में न दें साथ

नहीं तो जा सकती प्रधानी

बिना किसी दबाव के मतदान में करें सहयोग

चंदौली जिले में गांव की सत्ता संभालने वाले प्रधान को लोकसभा चुनाव में सावधान रहने की जरूरत है। प्रत्याशियों के पक्ष में दिलेरी दिखना प्रधानों पर भारी पड़ सकता है। क्योंकि आयोग के साथ ही खुफिया एजेंसी को इन पर पैनी नजर होगी। यह जानकारी जिला प्रशासन की ओर से दी जा रही है। अगर किसी उम्मीदवार को जीत हार दिलाने के चक्कर में जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी ली तो उनके लिए खतरे की घंटी बज सकती है।

आपको बता दें कि दरअसल, चुनाव में जन, घन व बल का सारा खेल प्रधान की ड्योढ़ी से ही होता है। प्रत्याशी भी गांवों में अपने वोट बैंक को साधने के लिए उन्हें मोहरा बनाते हैं। इसके पीछे साफ-साफ कारण गांव की राजनीति में प्रधानों अच्छा खासा रसूख रहता है। कई प्रधान तो ऐसे भी हैं, जो सीधेतौर पर राजनीति दलों से जुड़े रहते हैं और खुलकर दलगत राजनीति भी करते हैं। ऐसे में एक जून की मतवन के 48 घंटे पूर्व से पल-पल की उनको गतिविधि की खुफिया एजेंसी अपने स्रोतों से जानकारी लेगी।

बताते चलें कि शराब, धन, कपड़ा और अन्य प्रलोभन के बल पर प्रधानी का चुनाव जीतने वालों के लिए बुरी खबर है। यदि लोकसभा चुनाव में प्रधान ने अपने चुनाव जैसा फंडा अपनाया तो उनको प्रधानी जाने तक की नौबत आ सकती है। लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी गाँव में वोट को समेटने के लिए प्रधानों से संपर्क साधते हैं। यही नहीं नामांकन, स्टार प्रचारकों की सभा में उनकी उपस्थिति के लिए प्रत्याशी बाकायदा निमंत्रण देते ही हैं, चुनाव में अपनी नईया पार लगाने को प्रत्याशी उनसे मनुहार भी करते हैं। चूंकि प्रत्याशियों को पता होता है कि यदि वह या उनके समर्थक गांव में कुछ भी प्रलोभन देते हैं तो बात दूर तक चली जाएगी।

इसके बाद निर्वाचन आयोग या पुलिस प्रशासन के संज्ञान में आने पर मुश्किलें और बढ़ सकती है। ऐसे में प्रधान को आगे करके गंवई मतदाताओं को आसानी से पक्ष में किया जा सकता है। हालांकि, आयोग ने निर्भीक मतदान की दिशा में यह निर्णय लिया है।

हार को जीत में बदलने की ताकत रखते हैं प्रधान
हर राजनीतिक दल मानता है कि गांव की राजनीति का अहम कद प्रधान होते हैं। वह लोकसभा प्रत्याशियों के लिए तुरुप का इक्का (मतलब सीधे जीत) है। प्रधान हार को जीत में बदलने की ताकत रखते हैं। ऐसे में सभी प्रत्याशियों की कोशिश रहती कि अधिक से अधिक प्रधान उनके पाले में आकर या तो प्रचार करें या भी बैकडोर से उनके चुनाव में सपोर्ट करें।

चंदौली ब्यूरो चीफ – नितेश सिंह यादव की रिपोर्ट
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