
सोनो जमुई संवाददाता चंद्रदेव बरनवाल की रिपोर्ट
हमे प्रसन्नता तब होती है जब मनचाही वस्तु प्राप्त होती है , और जब कोई वस्तु पास से चली जाये तो अप्रसन्नता होती है । ईश्वर तो परिपूर्ण है , उसके पास किसी भी वस्तु की कमी नहीं है , ईश्वर सर्वज्ञ है , पूर्ण ज्ञानी है।
अतः उनके सुखी अथवा दुखी होने का कोई प्रश्न ही नही उठता । क्योंकि ईश्वर सदा एकरस रहता है , उसमें किसी बात की बढ़ोतरी या घटोतरी नही होती ।
जो परमपिता परमात्मा सूर्य , चन्द्रमा इत्यादि ग्रहों को प्रकाशित करता है , उसे हम कुछ दीपक जलाकर क्या प्रसन्न कर सकते हैं ।
घर में रोशनी नहीं है तो दीपक जलाने से प्रकाश मिल सकता है , परन्तु ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए दीपक जलाना बिलकुल अज्ञानता की बात है ।
धूप अगरबत्ती से थोड़ा धुआं उठता है , तथा सुगंध फैल जाती है, जिससे मच्छर इत्यादि जीव भाग जाते हैं । ईश्वर को सुगंध की क्या आवश्यकता है ।
दीपक , अगरबत्ती व धूपबत्ती इत्यादि जो हम पूजा में जलाते हैं, वे सब यज्ञकर्म न करने के बहाने हैं । सामग्री में सुगन्धित वस्तुओं का मिश्रण इस लिए होता है।
जिससे अग्नि में आहुति देने पर वायुमंडल में सुगंध फैले और जड़ी बूटियों से कीट – कीटाणुओं का सफाया हो । इससे घर में पवित्रता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है । गोधृत परमाणु रोगों को घर में आने से रोकते हैं ।
आजकल यज्ञकर्म को सभी पवित्र और लाभकारी तो मानते हैं , परन्तु कर्मकाण्ड करने को किसी के पास समय नहीं है । दीपक , धूप ,अगरबत्ती यज्ञ का ही बिगड़ा हुआ रूप है।
प्रायः स्त्रियाँ घरों में संध्या होते ही दीपक , धूप , अगरबत्तियां जलाती है । कुछ न करने से यह भी अच्छा ही है , परन्तु दीपक गाय के घी से जलाना ही लाभकारी है ।
शोध से यह बात निकलकर सामने आई हे कि अगरबत्तियां भी घटिया स्तर और मिलावट से बनी होने के कारण अस्थमा और कैन्सर जैसी बिमारियों को जन्म दे रही है ।
दीपक ओर धूप अगरबत्ती से यज्ञ का कोई विरोध नहीं है । इनको जलाना लाभकारी है , परन्तु धार्मिक होना नहीं है , यह शुद्ध होनी चाहिये ।
दीपक प्रकाश देता है । प्रकाश का आध्यात्मिक अर्थ है ज्ञान , अतः दीपक हमें ज्ञान का दीपक जलाने की प्ररेणा देता है ।
अत: ज्ञान से ही अज्ञानरूपी अंधेरा भाग जाता है । अगरबत्ती सुगंध देती है । हमें प्रेम और श्रद्धा की सुगंध से समाज को सुगंधित करना चाहिये ।