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बिहारराज्यरोहतास

पत्नी को पति की बातों का अवहेलना नहीं करना चाहिए: श्री जीयर स्वामी जी महाराज 

पत्नी को पति की बातों का अवहेलना नहीं करना चाहिए: श्री जीयर स्वामी जी महाराज

रोहतास दावथ संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट 

दावथ (रोहतास): परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि राजा दक्ष को प्रजापतियों का प्रजापति नियुक्त किया गया।

उसके बाद उनके लिए प्रयागराज में एक अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया। उस समारोह में बड़े-बड़े संत महात्मा देवता शामिल होने के लिए आए थे।

उस सभा में भगवान विष्णु, ब्रह्मा जी भी पहुंचे थे। राजा दक्ष की 14वीं सबसे छोटी पुत्री का विवाह शंकर जी के साथ हुआ था। जब राजा दक्ष प्रजापतियों के प्रजापति बने तब उनके विचार, आचरण, अहंकार से डूब गए।

देखिए जब किसी व्यक्ति को पद मिल जाता है। तब उसका व्यवहार, आचरण, बोलचाल बदल जाता है। प्रयागराज में आयोजित सभा में जब प्रजापति राजा दक्ष के दामाद शिवजी पहुंचते हैं, तब शिवजी भगवान विष्णु को प्रणाम करते हैं। उस सभा में हजारों हजार की संख्या में लोग उपस्थित थे। शंकर जी अपने ससुर प्रजापति दक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेते हैं।

बताया गया है कि जब किसी बड़े आयोजन में हजारों हजार की संख्या में लोग उपस्थित हो, उस समय सभा में सबसे जो वरिष्ठ व्यक्ति होता है, उसको यदि नमस्कार कर लिया जाता है तो पूरे सभा में मौजूद सभी लोगों को एक-एक करके नमस्कार करने की आवश्यकता नहीं है।

क्योंकि यदि एक-एक व्यक्ति को नमस्कार किया जाए तो सभा में अव्यवस्था फैल सकती है। इसी बात को सोचते हुए शंकर जी अपने ससुर को मन ही मन प्रणाम कर लिए। अब इस बात को लेकर के प्रजापति दक्ष जो अभिनंदन समारोह के मुख्य अगुआ थे, जिनको अभी-अभी प्रजापतियों का प्रजापति बनाया गया था, वह अहंकार से क्रोधित हो गए। भरी सभा में शंकर जी को अपशब्द कहने लगे।

गाली गलौज के साथ अपमानित करने लगे। शंकर जी सभा में चुपचाप बैठे हुए थे। शंकर जी के साथ गए उनके गण शंकर जी से कह रहे थे कि महाराज आज्ञा दीजिए हम लोगों से बर्दाश्त नहीं हो रहा है। इस प्रकार से राजा दक्ष आपको बेइज्जत कर रहे हैं। हम लोग इनको छोड़ेंगे नहीं।

शंकर जी कह रहे थे कि नहीं-नहीं आप लोग शांत बैठिए। वह हमारे ससुर हैं, बड़े हैं, आदरणीय हैं, बोलने दीजिए उनको। लेकिन प्रजापति राजा दक्ष फिर भी चुप नहीं हो रहे थे। अंत में शंकर जी के गण क्रोधित हो गए।

प्रजापति दक्ष को भला बुरा कहना शुरू किए। उधर से राजा दक्ष के पुरोहित भृगु ऋषि भी शंकर जी के गणों को श्राप देने लगे। दोनों तरफ से खूब एक दूसरे को सुनाया गया। जिसके बाद शंकर जी उस सभा से वापस लौट कर आ गए।

वापस आने के बाद शंकर जी इस बात को अपनी पत्नी सती जी को भी नहीं बताए। इधर प्रजापति दक्ष शंकर जी को अपमानित करने के लिए बड़े यज्ञ का आयोजन शुरू कर दिए। इस यज्ञ का आयोजन उत्तराखंड के हरिद्वार से ऊपर देवभूमि में आयोजित किया जा रहा था।

जिस जगह का नाम कनखल है। वहां पर यज्ञ के आयोजन में बड़े-बड़े ऋषि, महर्षि, तपस्वी सभी लोग आ रहे थे, जा रहे थे। आकाश मार्ग से कई विमान आ रहे थे। कई विवान जा रहे थे।

इस घटना को देखकर के सती जी मन में सोच रही थी कि इतने विमान कहां जा रहे हैं। तब तक आसपास में रहने वाली महिलाएं सती जी से कहती हैं, कि आपके पिताजी बड़े यज्ञ का आयोजन कर रहे हैं। आपको जानकारी नहीं है।

सती जी कहती हैं, नहीं मुझे जानकारी नहीं है। शिवजी से आकर के सती जी पूछती हैं कि महाराज मेरे पिताजी क्या यज्ञ कर रहे हैं। आपको निमंत्रण मिला है। शंकर जी ने कहा नहीं देवी जी मुझे निमंत्रण नहीं मिला है।

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