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रक्षाबंधन का इतिहास भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ा है, जो की रामायण काल से भी प्राचीन है।

रिपोर्ट बिरेंद्र चंद्रवंशी 

रक्षाबंधन का मंत्र है ‘येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे! मा चल! मा चल!!’

इस मंत्र की रचना कैसे हुई इससे जुड़ी कथा है कि, विष्णु भगवान ने वामन बनकर राजा बलि से दान में सब कुछ मांग लिया।

राजा बलि को जब भगवान की चाल का ज्ञान हुआ तब उसने वामन भगवान से वरदान मांगा कि हे भगवान आप मेरे साथ पाताल में निवास करें।

विष्णु भगवान राजा बलि के साथ पाताल चले गए। इससे माता लक्ष्मी दुःखी हो गई और राजा बलि को दिए वरदान के बंधन से भगवान को मुक्त करवाने के उपाय सोचने लगीं। माता लक्ष्मी वेष बदलकर राजा बलि के पास गयी और राजा बलि को अपना मुंह बोला भाई बना लिया।

सावन पूर्णिमा के दिन बलि को देवी ने राखी बांधा। राजा बलि ने जब देवी से राखी बंधने के बदले उपहार मांगने को कहा तो देवी ने भगवान विष्णु को वरदान के बंधन से मुक्त करने का वचन मांग लिया। बलि ने भगवान को वरदान से मुक्त कर दिया और माता लक्ष्मी के साथ बैकुण्ठ लौट आए।

रक्षा सूत्र के इसी महत्व के कारण परंपरागत तौर पर राखी का त्योहार सदियों से मनाया जा

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