
बिहार चुनाव परिणाम, जनादेश के मायने: डॉ. अखलाख अहमद
रोहतास संवाददाता चारोधाम मिश्रा की रिपोर्ट
बिक्रमगंज ( रोहतास) बिहार विधान सभा चुनाव छिट- पुट अप्रत्याशित घटनाओं के साथ सफलता पूर्वक संपन्न हुआ | स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहला मौका है जब इतनी बड़ी संख्या में बिहार के लोगों ने चुनाव में सहभागिता सुनिश्चित की है |
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार बिहार में कुल 66.91% मतदान हुआ है | इसमें पुरुषों का मतदान प्रतिशत 62.91रहा जबकि महिलाओं का मतदान 71.6% दर्ज किया गया | स्पष्ट है पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने 8.8 % मतदान अधिक किया है |
यह स्थिति चुनाव आयोग की सकारात्मक भूमिका, प्रशासनिक कुशलता, राजनीतिक जागरूकता, न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति चिंता से मुक्ति आदि को दर्शाता है | प्रायः चुनाव परिणाम के बाद सत्ताधारी दलों को प्रशासन की मदद, चुनाव आयोग की निष्पक्ष भूमिका पर प्रश्न चिन्ह, EVM पर सवाल और मतदाताओं को गुमराह करने का आरोप विपक्ष द्वारा लगाये जाने का फैशन बन चुका है |
अब सीधे-सीधे चुनाव परिणाम की बात की जाये तो बिहार में राजग गठबंधन की जीत की सुनामी का कारण जंगल राज की वापसी का भय कदापि नहीं है | युवाओं का एक बड़ा तबका तो उस फेज को देखा भी नही था।
ऐसे में सिर्फ जंगल राज वापसी का भय दिखाकर इतना बड़ा जनादेश प्राप्त नहीं किया जा सकता है | दरअसल इस जीत का बड़ा कारण यह है कि सत्ताधारी गठबंधन द्वारा जो विकास की अविरल धारा प्रवाहित है उसपर विराम न लगे।
अब मतदान भय से नहीं वरन् आशा से किया जा रहा है | आज समाज के प्रत्येक तबके को, प्रत्येक स्तर पर अपना अधिकार प्राप्त ही नहीं है वरन् उसका निर्विवाद रूप अनुप्रयोग करने में बाधा का सामना नहीं करना पड़ रहा है | हालाँकि इसके पीछे डिजिटल कार्य संस्कृति भी एक कारण हो सकता है |
चुनाव परिणाम अप्रत्याशित नहीं है | सोशल इंजीनियरिंग के प्रणेता एवं दूरगामी सोच रखनेवाले नीतीश कुमार की समझ राजनीति से कहीं अधिक सामाजिक है।
बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग जिसे पचपनिया वोट कहा जाता है आज उसमें 112 जातियों सम्मिलित हो चुकी है | इस तथ्य की पुष्टि बीबीसी को दिए गए एक साक्षात्कार में पटना विश्विद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ राकेश रंजन ने भी किया है। यह वृहत आकार ले चुका है एवं ये वोटर साइलेंट ही नहीं पूर्णतः संगठित है।
नीतीश कुमार ने इन्हें निर्णायक मतदाता के रूप में पहचान कर इनके प्रति गहरी संवेदना रखते हुए, उनकी सहानुभूति प्राप्त की है | ये ऐसे मतदाता है जो आज पूर्णतः जागरूक एवं आक्रामक हो चुके है ,किन्तु चौक- चौराहों पर राजनीतिक विमर्श में ये सहभागी नहीं होते हैं |
नीतीश कुमार के नेतृत्व में यह चुनाव बड़े ही संयमित, सूझ-बुझ एवं संतुलित रणनीति के साथ लड़ा गया | विपक्ष के कई गंभीर मुद्दों का समाधान यथा : सरकारी नौकरियों में डोमिसाइल नीति, 125 यूनिट मुफ्त बिजली, बड़े स्तर पर सरकारी नौकरियों के विज्ञापनों का प्रकाशन एवं कुछ का संपादन चुनाव पूर्व ही करके सत्ताधारी गठबंधन ने जीत का नीव रख दिया था |
राजग गठबंधन के चुनावी रणनीतिकारों ने सीट बंटवारा भी बड़ी सूझ- बुझ के साथ किया | उदहारण स्वरुप इस बार चुनाव में रोहतास जिला के सभी सीटों पर जेडीयू को टिकट दिया गया, जहाँ 7 में से 6 सीट पर जीत दर्ज हुआ | पिछले चुनाव में ये सारे सीट महागठबंधन के पक्ष में रहा था | राजग गठबंधन का यह कदम आपसी तालमेल को प्रदर्शित करता है।
इस बार के बिहार चुनाव में सबसे बड़ा विपक्ष एवं कई चुनाव विश्लेषकों का सत्ता पक्ष पर आरोप आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले बड़ी संख्या में महिलाओं के खाते में 10000 रुपया सरकार द्वारा दिए जाने का है, जिसे राजनीतिक रिश्वत या मत खरीदने के सन्दर्भ में देखा जा रहा है | इसमें कोई संदेह नहीं है कि पैसा सभी को प्यारा है एवं इसके प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सीमांचल में गरीबी, पिछड़ापन, पलायन, मृत्यु दर अधिक,प्रति व्यक्ति आय का कम होना एक ऐसे पृष्ठभूमि का सृजन करता है जहाँ पैसे देकर मत लेना अन्य जगहों के अपेक्षा आसान है | इसके बावजूद सीमांचल में सभी पाँचों सीटों पर एआईएमआईइएम के उम्मीदवारों का जितना कहानी कुछ और ही बयाँ करती है।
यह ऐसा क्षेत्र है जहाँ एक बायसी सीट को छोड़कर सभी जगह मुस्लिम उम्मीदवार ही हारे है, जिनमे जेडीयू के मुस्लिम प्रत्याशी भी शामिल है | अब कुछ लोगों का कहना है कि धार्मिक ध्रुवीकरण का परिणाम है |
इस सन्दर्भ में कहना है कि हारने वाले एक को छोड़कर सभी उसी धर्म के है | यदि 10000 निर्णायक फैक्टर होता तो निश्चय ही जदयू एवं उसके गठबंधन के मुस्लिम प्रत्याशी ही विजयी होते | यह भी सत्य है कि यहाँ कई-कई मुस्लिम विकल्प उपलब्ध थे जिनमें वे भी शामिल थे जिन्हें मुस्लिम वोट का एकमात्र उतराधिकारी माना जाता है |
बिहार विधान सभा चुनाव 2025 की सबसे सुखद बात यह है कि कई प्रयासों के बावजूद भी धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं हुआ | ओसामा साहाब के रघुनाथपुर के चुनाव में देश गृह मंत्री समेत बड़े नेताओं ने धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास किया था, किन्तु वह निष्प्रभावी रहा है | इस चुनाव की प्रकृति पर अगर विचार किया जाये तो मुसलमानों को छोड़ यादव बनाम लगभग जातियों का चुनाव रहा।
यहाँ जातीय स्तर पर ध्रुवीकरण के बावजूद विकास की सही दिशा एवं सरकार की सकारात्मक एवं सर्वहित के कदम इस ध्रुवीकरण पर चादर डाल देते हैं और सबकुछ पूर्णतः लोकतान्त्रिक मूल्यों के अनुरूप दृष्टिगत प्रतीत होता है।
राजग गठबंधन एक बड़ा गठबंधन है जिसमें कमोबेश सभी जातियों का प्रतिनिधित्व है | जबकि विपक्षी गठबंधन मूलतः यादव, मुस्लिम एवं मल्लाह के मत तक अपने को सीमित करता है | ध्यान रहे जब तालाब बड़ा होगा तो उसकी धारण क्षमता भी अधिक होगी एवं उस तालाब से पानी भी ज्यादा ही निकलेगा |
तंत्र का मामूली समर्थन सत्ता को हो इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता , किन्तु चुनाव परिणाम सिर्फ तंत्र के सहयोग का प्रतिफल है , ऐसा कहना बेईमानी है |
राजग की यह जीत की सुनामी राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित करेगी | 2026 में असम, पश्चिम बंगाल एवं तमिलनाडु में चुनाव होने है | युवा पलायन बेरोजगारी के सन्दर्भ में, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि एवं सीमांचल का विकास सरकार के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है |
महागठबंधन में आपसी ताल-मेल का अभाव, 243 सीट पर 255 उम्मीदवारों का चुनाव लड़ना, कांग्रेस का बिहार में मृतप्राय संगठन का होना, सहनी की अनुभवहीनता, राजद के टिकट बंटवारे से उपजा असंतोष, गठबंधन द्वारा सीएम चेहरा विलम्ब से घोषित करना एवं सबसे बढ़कर महिला मतदाताओं की सहानुभूति विपक्ष के साथ होना हार का प्रमुख कारण हो सकता है |
महागठबंधन को अब दीर्घकालिक रणनीति बनाकर, जनता से सीधे जुड़कर, अहम् का विसर्जन कर, आपसी ताल मेल बनाकर कर नयी परिदृश्य में नए दृष्टि से सोचने की आवश्यकता हैं |




















