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मग समाज के सफलता का द्वार खोलता श्री सौरधर्म सम्मेलन-काशी

रिपोर्ट चारोंधाम मिश्रा 

काशी क्या है? और यहां सम्मेलन क्यों?

जब साधक की चित्तवृत्ति शुद्ध शान्त और निःस्वार्थ होकर अपने अभ्यन्तर के आध्यात्मिक हृदय में वहां स्थित होती है जहां प्रज्ञा का बीज होता है तो उसी अवस्था को काशी प्राप्ति कहते हैं।

यह आनंदवन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि परम सुसुप्ति के समान है जहां आनंद ही आनंद है।यहां महाश्मशान है क्योंकि जहां शिव का वास होता है उनके तेज़ से विकार दग्ध हो जाते हैं अनात्म रूप उपाधियों से छूटकारा मिलता है औरं अहंकार दग्ध हो जाता है। गौरी मुख है जहां काशी प्राप्ति की अवस्था में साधक- दैवी ज्योति और बोध शक्ति के सम्मुख पहुंच जाता है। यहां मणिकर्णिका है जो प्रणव कर्णिका है।जो चित्त की तीन अवस्थाओं से परे है। यहां गंगा हैं।

श्री शिव की कृपा से इस आध्यात्मिक गंगा का लाभ अभ्यन्तर में अंतरस्थ काशी क्षेत्र में होता है।इस वर्ष का श्री सौरधर्म यज्ञ हो रहा है परम सौभाग्य का वर्ष है शाकद्वीपीय समाज के लिए।

 विश्वेश्वरगंज जहां मूल काशी है। जहां मगों का सौर साधना स्थली एवं अनुसंधान केन्द्र लोलार्क मंदिर है।

 गंगा तट,आदिकालीन माता शीतला मंदिर और घाट बाबा विश्वनाथ के महान सेवक सहित देशभर के पुरे मग समाज द्वारा मिलकर सम्मेलन हो रहा है।यह अवसर देश के किसी कोने में नहीं मिलने वाला है। जहां दिनांक 17 मार्च-2024 (रविवार) को आप हम मिलकर पूजन हवन और सम्मेलन करेंगे अपने अनुदान से एक दूसरे के साथ बैठकर खाने खिलाने ,संगत पंगत का सौभाग्य प्राप्त होगा। यहां आना अपने आप में परम सौभाग्य होगा।

यह मग समाज का स्वर्णिम वर्ष होंगा।

 सौर समाज के लिए सफलता के द्वार खुलने वाला है।

जो काशी में नहीं वह कहीं भी नहीं। अंत में भगवान शंकर से सर्वकल्याणार्थ हो रहे श्री सौरधर्म सम्मेलन की सफलता के लिए कामना इन मंत्रों से करता हूं।

वन्दे वन्दनतुष्टमानसमति प्रेम प्रियं प्रेमदं,

 पूर्णं पूर्णकरं प्रपूर्ण निखिलैश्वर्यैकवासं शिवम्।

सत्यं सत्यमयं

त्रिसत्यविभवं सत्यप्रियंसत्यदं

विष्णु ब्रह्मनुतं स्वकीय कृपयोपात्ताकृतिं शंकरम्।।

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